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Friday, September 17, 2010

मजदूर......

मैं हूँ अदना सा मजदूर,

शायद इसलिए हूँ मजबूर

गढता हूँ मैं ही कल-आज,

फिर भी ठुकराता समाज

मेरे भी है सपने कुछ,

है मेरे भी अपने कुछ

बस रोटी और दाल मिले,

काम मुझे हर साल मिले

पेट में खाना, दिल को चैन,

सपने देखते हैं नैन

महलों की ना चाहत मेरी,

छोटी सी है राहत मेरी

झोपड़े पर एक तिरपाल,

मिले दिहाड़ी, मालामाल

इसलिए खटता हूँ दिन रात,

सोलह घंटे, दिन है सात

अपना बेटा पढ़ लिख जाय,

डॉक्टर वकील कुछ बन जाय

बेटी की भी हो जाय शादी,

मेरी पत्नी बन जाय दादी

अपनी किस्मत, अपना हाथ

हुज़ूर,

बस आपकी,

दुआ हो साथ !

39 comments:

  1. श्रमिकों की महत्ता को समर्पित यह पोस्ट सारगर्भित अर प्रशंसनीय है।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    साहित्यकार-महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  2. मजदूर कितना मजबूर ......जी तोड़ मेहनतकश यह तबका समाज और सभ्यता के निर्माण का बहुत बड़ा हिस्सा है ....बहुत उम्दा
    चिन्मयी को बहुत प्यार
    यहाँ भी पधारें ...
    विरक्ति पथ

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  3. सुन्दर जमीनी कविता -
    (ये भयानक आँखें कब पीछा छोड़ेंगी ? :)

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  4. वाह बहुत ही सुंदर.... मजदूर की व्यथा भी .... मजदूर की कथा भी....
    सब कुछ है इस रचना में.....

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  5. आप सभी का शुक्रिया ....
    @ मोनिका जी धन्यवाद ...
    यही तो आज के मजदूर कि व्यथा है ....

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  6. हुज़ूर,
    बस आपकी,
    दुआ हो साथ !

    वो सुबह कभी तो आयेगी...
    बहुत सुन्दर रचना!

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  7. @Smart Indian - स्मार्ट इंडियन

    उस सुबह का तो इन्तजार है :)

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  8. सुंदर रचना है आपकी. शीर्षक में द के नीचे बड़े ऊ की मात्रा लगाएं तो बढ़िया रहेगा.

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  9. महलों की ना चाहत मेरी,
    छोटी सी है राहत मेरी ।
    झोपड़े पर एक तिरपाल,
    मिले दिहाड़ी, मालामाल ।
    इसलिए खटता हूँ दिन रात,
    सोलह घंटे, दिन है सात.....

    उस सुबह पर सुंदर रचना है आपकी.....!

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  10. हमारी दुआ साथ है जी।
    अच्छी भावना के साथ लिखी कविता है आपकी।

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  11. अच्‍छी प्रस्‍तुती
    Satish Kumar Chouhan
    Bhilai
    कभी फुरसत मिले तो क्लिक करे
    http://satishchouhanbhilaicg.blogspot.com
    http://satishmuktkath.blogspot.com/
    http://satishkumarchouhan.blogspot.com

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  13. सुन्दर रचना.
    और प्लीज़ काजल कुमार जी की बात मान लीजिये.

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  14. आप सभी का धन्यवाद !

    @काजल कुमारजी
    हमने आपकी बात मन ली है ...धन्यवाद !

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  15. अपनी किस्मत, अपना हाथ ।

    बहूत ही सुंदर अभिव्यक्ति!!

    मजदूरों की इन्ही इछाओं की दूखती रग पकड कर लोग नेतागिरि करते है।

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  16. श्रम और श्रमिक दोनों को नमन. बहुत ही सुन्दर रचना है. .

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  17. ...मजदूर की जीवनी का वास्तविक चित्रण...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!

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  18. This comment has been removed by the author.

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  19. सुंदर अभिव्यक्ति!!

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  20. झोपड़े पर एक तिरपाल,
    मिले दिहाड़ी, मालामाल ।
    इसलिए खटता हूँ दिन रात,
    सोलह घंटे, दिन है सात.....

    उस सुबह पर सुंदर रचना है आपकी.....!

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  21. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया .........माफी चाहता हूँ..

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  22. हमारी भी यही प्रार्थना है ईश्वर से।

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  23. एक मजदूर के मासूम से सपने----दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा।

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  24. मेहनतकश की पीड़ा को अच्छी तरह बयान करती कविता ...!

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  25. अपनी किस्मत,अपना हाथ
    फ़िर भी मेरी दुआ
    है आपके साथ कि आपके
    सर हो "उसका" हाथ...

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  26. छोटे छोटे सपने लिए मजदूर ( आम आदमी ) कि ख्वाहिशें ...बहुत अच्छी तरह कविता में पिरोई हैं ..

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  27. एक मजदूर की पीड़ा को खूब समझा है ,सुंदर अभिव्यक्ति ,मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया ।

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  28. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  29. बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता! शानदार प्रस्तुती !

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  30. coral..badhai aapko ki aapne bahut hi saral shbdon mein vytha ko ukera hai..keep it up!

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  31. आपकी निर्मल भावनाओं को व्यक्त करती , सुंदर भावों से सजी सुंदर प्रस्तुति.

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टिप्पणी के लिए आपका बहुत धन्यवाद. आपके विचारों का स्वागत है ...

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