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Saturday, July 24, 2010

रिश्ता ...

मैं कोई कवयत्री नहीं हूँ ... बस कुछ मन में ख्याल आ जाता है तो उसे शब्दों में ढालने की कोशिश करती हूँ ... एक छोटी सी कोशिश आपके सामने हाज़िर है ...
...
मैं कोई

Friday, July 23, 2010

ये सिर्फ, और सिर्फ, मेरा ब्लॉग है ....

एक मित्र ने मेरी पोस्ट भूख पर टिपण्णी दी है, कि ‘ये भी तो इन्द्रनील जी का ही ब्लॉग है वैसे.....’, टिप्पणी के लिए उनका आभार !

पर अब शायद उनको ये जानकर अचरज होगा कि यह मेरा अपना ब्लॉग है जिसमे में अपने विचार खुद लिखती हूँ !

इस टिपण्णी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या एक स्त्री का अपना अलग वजूद नहीं हो सकता है ?

आज मैं इस मुकाम पर हूँ (मेरे पास भूगर्भशास्त्र में डाक्टरेट है, विदेश में एक विदेशी कंपनी में काम कर रही हूँ) । क्या मैं इस मुकाम तक यूँ ही आ गई हूँ ? क्या इसमें मेरी कोई मेहनत नहीं है ? और अगर है, तो क्या मै इतनी सक्षम नहीं हूँ कि अपने आप एक ब्लॉग में कुछ लिख पाऊँ ?

ये बात सच है कि हर सफल स्त्री के पीछे उसके पति तथा घरवालों का बहुत सहारा होता है, पर क्या साथ साथ उसकी जिद, उसकी कुछ कर पाने कि चाहत, उसकी मेहनत ये सब बेकार हैं ? लोग ये सब भूल क्यूँ जाते है ?

मुझे इस सोच से चिढ आती है कि एक स्त्री हमेशा ही पुरुष के सहारे चलती है । पुरुष शायद कभी अपनी सोच से बाहर निकलना नहीं चाहते या फिर उनका पुरुष अहंकार उन्हें ये करने से रोकता है । मेरे साथ ये पहली बार नहीं हुआ है ... चूँकि मैं एक पुरुष बहुल विषयक्षेत्र में हूँ, अपने कॉलेज जीवन से ही इस प्रवृति का सामना करते आई हूँ ।

ऐसे शख्स मुझे आये दिन अपनी जिंदगी में मिलते है कभी दोस्त बनके तो कभी कलीग बनकर । पर मैंने भी हारना नहीं सिखा है । मैं लड़ते आई हूँ, और लड़ते रहूंगी । या यूँ कहिये मैं पंख फैलाकर उड़ते रही हूँ और उड़ते उड़ते और ऊँचाइयों पर पहुँच जाउंगी ।

Monday, July 19, 2010

गाड़ी चली राम भरोसे......

आज फिर एक ट्रेन दुर्घटना घटी! दुर्ग-भागलपुर-रांची वनांचल एक्सप्रेस सेंथिया स्टेशन पर खड़ी थी और माल्दा से आ रही उत्तरबंगा एक्सप्रेस ने पीछे से उसे टक्कर मारी ये स्टेशन हावड़ा से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर है... रेलवे के सूत्रों के अनुसार उन्हें दुर्घटना क्यूँ घटी इसकी पूरीतरह जानकारी नहीं है !

यहाँ दुर्घटना इतनी भयानक थी कि, टक्कर से वनांचल एक्सप्रेस ट्रेन के तीन डिब्बे बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए!

रेलवे के साथ ये सब आये दिन होते रहता है .. आप जब भी प्रवास करते हैं, आप जानते नहीं कि सच में आप अपने इच्छित जगह तक सही सलामत पहुँच पाएंगे या नहीं ! कभी रेल दुर्घटना तो कभी डकैती ये बातें तो अब आम हो गयी है !

रेल प्रशासन बड़ी बड़ी बातें करता है पर जैसे रेल कि सुविधाएँ हैं उनके बारे में क्या कहें ?

सच में, कब तक हमारी ये रेल गाड़ी राम भरोसे चलती रहेगी ...आखिर कब तक ....????

Sunday, July 18, 2010

भूख .....


कल मेरे साथ एक अजीब सा हादसा हुआ जो मेरे मन को झकझोर कर रख दिया !
रविवार का दिन था, सुबह ११ बजे, मैं अपने पति इन्द्रनील के साथ बाज़ार से कुछ घरेलु सामान लेने बाहर गई थी । यहाँ मैं अकसर जाती हूँ, ज्यादातर अकेले ।
सारा सामान खरीद लिया और साथ ही बाहर से ही खाना खरीद लिया । भारी सामान मैंने इन्द्रनील के हवाले कर दिया और खाने का पाकेट मैंने संभाल लिया । रास्ते में रविवार कि वजह से भीड़ ज़रा कम ही थी ।
हम दोनों भी अपनी बातों में खोये आगे बढ़ रहे थे, कि तभी वहां कुछ लड़कों की एक टोली पहुंची । कपड़ो और शक्ल सूरत से ही वो लोग गरीबों की बस्ती से है ये पता चल रहा था । हम भी थोडा रास्ते के साइड में हट गए ताकि उन्हें अवोइड कर सकें ।
उनमे से एक लड़का पैसे मांगने लगा । जैसे हम करते है, हम उसे टाल कर आगे बढ़ गए । तभी आगे से उन्ही के और साथी हमारे पास आ गये और जबरजस्ती से पैसा और खाना मांगने लगे । हम भी रास्ता बचाके चलने लगे । तभी मेरे पिछे से एक ८ - ९ साल का लड़का जो कि उन्ही का साथी था, अचानक आया और मेरे हाथ से खाने के पाकिट पे झपटा । मैं सजग थी और मैंने झट से उसका हाथ पकड़ लिया । तभी आसपास के कुछ लोग भी चिल्लाये । वो लड़के तुरंत वहां से भागे । हम भी आगे बढ़ गए, पर ना जाने क्यूँ, बहोत बुरा लग रहा था !
बातों बातों मै मैंने इन्द्रनील को बोला वो लड़के मेरा हैण्ड बैग भी छिन सकते थे पर उन्होंने वो नहीं किया वो लोग सिर्फ खाना चाहते थे ........... भूख उन्हें जुर्म करने पर मजबूर कर रही थी । हम बहोत आगे बढ़ आये पर ना जाने मन अच्छा नहीं लग रहा था । तभी इन्द्रनील ने वो खाने का पाकेट मेरे हाथ से लिया और मुझे वही रुकने के लिए बोल कर पलट गए ... उन्हें वापस जाता देखकर मै थोडा डर ही गई और मैं उनके पीछे जाने लगी । मैं काफी दूर थी तब मैंने देखा नील वो खाना उनके हवाले कर रहे थे और वो लोग पीछे हट रहे थे । वो लोग मना कर रहे थे पर इन्द्रनील ज़बरदस्ती उनके हाथो में खाना देकर फिर लौट आये । वो खुश लग रहे थे, मैं अभी भी थोडा डरी हुई थी ।
हम दोनों फिर घर लौट आये । आने के कितने देर तक हम दोनों में यही चर्चा चलती रही, कि भूख इंसान को कितना लाचार कर देती है !

चित्र गूगल सर्च से साभार लिया गया है

Thursday, July 15, 2010

जीवन के मोड (Turning Points)

जीवन क्या है ?

कितना अजीब सवाल है । आज मैंने खुद से पूछ कर देखा । सच में, जवाब है भी और नहीं भी, ये तो अपना अपना नजरिया है कि उसे क्या लगता है !

कई बार जीवन में ऐसा होता है कि जो चीज़ चाहिए है उसके लिए हम लाख कोशिशे करें और यकीं भी हो कि वो मिल रही है पर अचानक एक पल में सब कुछ बदल जाता है !

वो पल वो क्षण ..... कितना अजीब महसूस होता है !

दिल की धड़कने रुक जाती है, मुंह से आवाज़ नहीं आती ।

ये मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स वाले हाव भाव तो मुश्किल से आम आदमी के चेहेरेपे आते देखे हैं मैंने; मेरे अपने चेहरे पर तो ये कभी नहीं आये । या तो कोई बहोत शांत हो जाता है या फिर रोना आ जाता है ।

पर यही तो जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ होते है ! हाँ को ना और ना को हाँ करने वाले । ये तो उस व्यक्ति पर निर्भर होता है कि वह उस बात को कितने सकारात्मक दृष्टी से लेता है !

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