आज एक पत्ता फिर से टूटा
आखो के सामने
छा गया
बीता हुआ जमाना
नीचे के पत्ते, धीरे धीरे,
पीले पड़ते जा रहे है
उपर नये कोपलें आ रही हैं
कुछ पत्ते झड़ने से दुःख होता है
आँखें गीली हो जाती है
कुछ पत्ते प्यारे हैं
ये सोचकर भी
दिल दहल जाता है
कि एक दिन
ये भी टूटकर गिर जायेंगे
पर शायद यही
प्रकृति का नियम है
wahhh coral ji
ReplyDeleteकुछ पत्ते झड़ने से दुःख होता है
आँखें गीली हो जाती है
कुछ पत्ते प्यारे हैं
ये सोचकर भी
दिल दहल जाता है
कि एक दिन
ये भी टूटकर गिर जायेंगे
प्रकृति के नियम पर पत्तों के बिम्ब से सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDelete(बिता=बीता, निचे=नीचे, नये कोपलें आ रहे =नयी कोपलें आ रहीं)
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-८) कला जीवन के लिए, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
... bhaavpoorn rachanaa !!!
ReplyDeleteचेहरा निराशा से पीला न होने दें।
ReplyDeleteकविता में भाव अच्छे हैं। कविता का प्रयास अच्छा है।
ReplyDeleteआपने ऊपर अपने ब्लाग में जो पंक्ति लिखी है उसमें मित्रोंगनो की जगह मित्रो ही पर्याप्त है। या फिर उसे मित्रगणों लिखें। अनुस्वार की एक-दो गलतियां और हैं,उन्हें भी ठीक कर लें।
Waah how true..and hence sad
ReplyDeleteकुछ पत्ते प्यारे हैं
ReplyDeleteये सोचकर भी
दिल दहल जाता है
कि एक दिन
ये भी टूटकर गिर जायेंगे
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बहुत ही सुंदर
भाव भी अर्थ भी..... आभार
सुन्दर अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteब्रह्माण्ड
क्या करें, प्रकृति का नियम ही यही है! बस यूं ही इसे पढकर स्मरण हो आया "द्रुत झड़ो जगत के जीर्ण पात"
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
इक अरसे पहले कुछ ऐसी पंक्तियाँ लिखी थी ...
ReplyDeleteकुछ ठीक से याद नहीं ...कभी कभी पुराणी डायरी निकलती हूँ तो सामने पद जतिन हैं ....
है प्रकृति का यही नियम
पाना , खोना और फिर
इक नया जन्म ...
मन को छू गई भाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई।
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ब्लॉगर्स की इज्जत का सवाल है।
कम उम्र में माँ बनती लड़कियों का एक सच।
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ReplyDeleteDear Coral,
काल का चक्र घूमता रहता है । समय के साथ सब कुछ पीछे छूटता जाता है। सब कुछ नाशवान है । यही श्रृष्टि का नियम है। इसलिए कहा गया है...
" Enjoy every moment of your life as if there is no tomorrow "
ZEAL
..
पर शायद यही
ReplyDeleteप्रकृति का नियम है
-शायद!! बहुत जबरदस्त भाव!
Waah! bahut khubsurat....
ReplyDeleteयही तो ज़िन्दगी का शाश्वत सत्य है।
ReplyDeletepatta aur admi what a composition.
ReplyDeletevery nice.
लीजिये आपके अनुरोध पे पुरानी डायरी से वो कविता . ढूढ़ लाई हूँ .....
ReplyDeleteदिनकर...
छुप जाता है जब
संध्या के आगोश में
ओढा देती है रजनी
झिलमिल तारों का आँचल
सुनहरी सय्या पर
होता मिलन ..
कुछ पल के लिए
खो जाते दोनों ...
एक दुसरे में रत
भोर की लालिमा पड़ती
मुखमंडल पर
होते जुदा
इक नया संसार बसाने
जन्म होता ...
इक नए इतिहास का ....
है प्रकृति का यही निया
पाना-खोना और
इक नया जन्म .....
निया को नियम पढ़ें ...
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! आखिर यही प्रकृति का नियम है ! सूखे पत्ते झड़ जाते हैं फिर नए पत्ते दिखाई देते हैं!
ReplyDeleteहरकीरत जी ...आपकी रचना तो बहुत सुन्दर है ...
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया !
इतनी टिप्पणी के बाद मेरे पास एक ही शब्द है.....अच्छी कविता...
ReplyDeleteyehi prakruti ka niyem hai.shayed jivan ka bhi. sunder rachna. mere blog par aane ka dhnyavad.
ReplyDelete! बहुत खूबसूरत रचना !
ReplyDeletewah.kitna sahi varnan.
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