सप्ताहांत है । बहुत दिनों बाद फिर ब्लॉग जगत में आ पाई । देखती हूँ तो बहुत उथल पुथल मची हुई है । आरोप प्रत्यारोप, गहन चर्चा, भावावेग इत्यादि इत्यादि ...
बहुत सारे ब्लॉग तथा टिप्पणियां पढ़ने के बाद मन में यह सवाल आया कि आखिर ये ब्लॉग जगत है क्या ।
क्या यहाँ हम एक दूसरे पर आरोप लगाने के लिए आये है ? या अपनी बौद्धिक भूख तथा अपनी सर्जनात्मकता को रूप देने के लिए आये हैं ?
होना क्या चाहिए, और हो क्या रहा है ...
बार बार यही सोचती रही कि एक अच्छी पोस्ट किसे कहा जा सकता है , एक अच्छा ब्लॉग कैसा होना चाहिए ?
ऐसे बहुत ब्लॉगर यहाँ देख रही हूँ , जो अपना ब्लॉग प्रसिद्ध करने के लिए क्या क्या नहीं कर रहे है, कौन कौन से हथकंडे ना अपना रहे हैं । ऐसी सस्ती प्रसिद्धि उन्हें किस मोड़ तक ले जा रही है, क्या इस बात का इल्म है उन्हें ?
अगर आप सच में प्रतिभावान व्यक्ति है (चाहे आप पुरुष हो या स्त्री) तो क्या आपको सोचना नहीं चाहिए कि एक सार्थक पोस्ट क्या हो, कैसी हो ?
मुझे लगता है कि एक सार्थक पोस्ट वो होनी चाहिए जिससे समाज को कोई सन्देश मिले ।
या फिर कोई ऐसी रचना हो जो आपकी रचनात्मकता पर प्रकाश डाले, अपने तथा दूसरों के बौद्धिक विकास को बढ़ावा दे और हमारी राष्ट्रभाषा के प्रचार का माध्यम बने ।
यह पोस्ट मैं किसी व्यक्तिविशेष पर ऊँगली उठाने के नहीं लिख रही हूँ ।
मैं देख पा रही हूँ कि कई लेखक है जिनकी कलम में बहुत ताकत है अगर वो अपनी लेखनी को सही दिशा दें और समाज को जागृत करने में उपयोग करें । यदि ऐसा हो तो यह कितना सुन्दर होगा । है ना ?
आपने सही कहा....
ReplyDeleteशायद इसलिए बड़े साहित्यकार ब्लॉग की तरफ मुंह नहीं करते .....
नए लेखकों के लिए ब्लॉग जरुर सहायक सिद्ध होता है पर मंझे हुए साहित्कारों के लिए नहीं ....
बस इतना ही कहूँगी आप बेहतर लिखने की कोशिश करें ......
और साथ ही पत्र-पत्रिकाओं से भी जुडी रहे ....
मैं भी कुछ दिन का विराम लेना चाहती हूँ .....
ये तो सच है कि बड़े साहित्यकारों को ब्लॉग के सहारे कि ज़रूरत नहीं है ...
ReplyDeleteखैर, ये भी है कि ब्लॉग केवल साहित्य का वाहन ही नहीं है ... उससे बढ़कर है ...
आपने सही सवाल उठाया है। ऐसा नहीं है कि बड़ साहित्यकार ब्लाग की तरफ नहीं आ रहे हैं। अगर हम गिनने जाएंगे तो हिन्दी के कम से कम पचास जाने माने साहित्यकारों के अपने ब्लाग हैं जिसपर वे लगातार लिख रहे हैं और विमर्श कर रहे हैं। लेकिन अंतर यही है कि वे बेवजह एक दूसरे की वाही वाही नहीं करते, न छीछालेदर। हम सबको भी उनसे कुछ सीखना चाहिए।
ReplyDeleteजाने माने कहानीकार और उपन्यासकार रमेश उपाध्याय ने आज ही अपने ब्लाग पर इस संदर्भ में एक टिप्पणी लिखी है। लिंक यहां है। आप भी देखें।
http://behtarduniyakitalaash.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
आपसे सहमत। यथार्थ लेखन। अच्छा संदेश। विचारोत्तेजक!
ReplyDeleteहिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
स्वच्छंदतावाद और काव्य प्रयोजन , राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
आपसे सहमत हूँ। मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि कब आँधी रुकती है है और रिमझिम फुहारें गिरती हैं।
ReplyDelete.
ReplyDeleteWearer knows where the shoe pinches .
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सच कहा आपने कुछ लोग अपनी बौद्धिक भूख और सृजनात्मकता के मायने भूल गए हैं. और खुद ही अपनी छवि खराब कर रहे हैं. कोफ़्त होती है ऐसे ब्लोग्स को देख कर.
ReplyDeleteवो लोग भूल जाते हैं की आने वाले कल का इतिहास वो सृजन कर रहे हैं...और अगर जरा ठन्डे दिमाग से सोचे की वो क्या सृजन कर रहे हैं तो शायद् खुद ही उनकी आँखे नीची हो जाएँगी.
जागरूक करती आपकी पोस्ट के लिए धन्यवाद.
आपका ब्लाग अच्छा लगा .ग्राम चौपाल मे आने के लिए धन्यवाद .आगे भी मिलते रहेंगें
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteप्रात: स्मरणीय सार्थक ब्लॉग चिंतन. (क्योंकि इसे पढ़ने के बाद हम भूल जाने वाले हैं कि इस चिंतन को मानसिक विमर्श के लिए सुरक्षित रखें)
ReplyDeleteपढें ऐसी ही क्षुद्र आकांक्षा 'लिंक पे लिंक बढ़ाते चलो ब्लॉग की रेंकिंग बढ़ाते चलो'
आपने सही कहा.
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग संकलक हमारीवाणी
आपकी बात में दम है, लेकिन फ़िर सार्थकता के पैमाने भी सबके अलग अलग ही होते हैं। जैसे जरूरतों की एक हायरार्ची है ऐसे ही प्रथमिकताओं की भी और हर व्यक्तिविशेष के लिये यह अलग हो सकती है। अपनी सूरत, अपने बच्चों की तरह हर लिखने वाला अपनी पोस्ट पर भी मुग्ध हो सकता है। जब हम बाजार में जाते हैं तो कितनी तरह के सामान की दुकानें होती हैं लेकिन हम अपनी जरूरत का ही सामान लेते हैं। पाठक भी अपनी पसंद का मैटीरियल ढूंढ ही लेते हैं।
ReplyDeleteआपके बताये सार्थकता वाले फ़ार्मूले पर चलें तो हम जैसे तो अपनी भड़ास निकाल ही न सकें, हा हा हा।
अच्छा विषय उठाया है आपने, शुभकामनायें।
कितनी सुन्दर सार्थक और सटीक बात कही आपने ...-आभार !
ReplyDeleteमुझे लगता है कि एक सार्थक पोस्ट वो होनी चाहिए जिससे समाज को कोई सन्देश मिले ।
ReplyDeleteया फिर कोई ऐसी रचना हो जो आपकी रचनात्मकता पर प्रकाश डाले, अपने तथा दूसरों के बौद्धिक विकास को बढ़ावा दे और हमारी राष्ट्रभाषा के प्रचार का माध्यम बने ।
मैं देख पा रही हूँ कि कई लेखक है जिनकी कलम में बहुत ताकत है अगर वो अपनी लेखनी को सही दिशा दें और समाज को जागृत करने में उपयोग करें । यदि ऐसा हो तो यह कितना सुन्दर होगा । है ना ?
एकदम सही और सार्थक विचार है आपका ,कास लोग इसे समझ पाते ..ब्लोगिंग का उपयोग देश और समाज हित में करना इस वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता है ...
आपका कहना सच है ... सकारात्मक पोस्ट .... सकारात्मक ऊर्जा देती है ....
ReplyDeleteव्यक्तिगत दुराव का स्थान नही होना चाहिए पोस्ट में ....
आपकी बात से सहमत ....
ReplyDeleteबड़ी विचित्र स्थिति है.
ReplyDelete१. जिनके पास कंटेंट है वे तकनिकी रूप से सक्षम नहीं है.
२. जो तकनिकी रूप से सक्षम है वे कंटेंट के मारे हैं.
३ . कुछ हैं जो दोनों प्रकार से सक्षम हैं
४. कुछ है जो दोनों मैं ठनठन गोपाल हैं.
ऐसे में ये सब तो चलता ही रहेगा. काफी कुछ बदला है, काफी कुछ बदलेगा .... लिखते रहें बस.
रवि रतलामी जी के शब्दों में कहें तो 'कंटेंट इज किंग '
"तुलसी इस संसार में भांति-भांति के लोग..."
ReplyDeleteसब अपनी क्षमता के अनुसार काम करते हैं। हरेक से पूर्णता की अपेक्षा कैसे की जा सकती है।
बहुत सुन्दर और शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteशिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ब्लॉग जगत में हो रहे मल्ल युद्ध को देख मन उदास हो जाता है. आपके विचारों से हम भी सहमत हैं.
ReplyDeleteआप से सहमत होते हुए यह भी कहना चाहूंगा कि हमें अपने लिए एक आचार संहिता बनानी चाहिए।
ReplyDeleteगीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!
सटीक बात कही आपने.......आपसे सहमत हूँ ।
ReplyDeletebahut sahi baat likhi hai aapne..vakai is par sochna chahiye aur haqdaar logo ki hoslaafjayi karni chahiye..
ReplyDeleteati uttam
ReplyDelete... saarthak abhivyakti, badhaai !!!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
ReplyDeleteगणेश चतुर्थी, तीज एवं ईद की बधाई
ReplyDeleteआप से सहमत ।
ReplyDeleteजैसे हर अच्छी चीज के साथ होता है ब्लॉग जगत में भी पॉलिटिक्स घुस आया है हम अपने आप को इससे अलग तो रख ही सकते हैं । गणपति बाप्पा मोरया ।
kripya aap bhi apni rachna bhookh bhej dijiye, her behtareen jazbaaton ko ek jagah lane ka mera prayaas hai ....
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