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Wednesday, September 15, 2010

पीला पत्ता

आज एक पत्ता फिर से टूटा
आखो के सामने
छा गया
बीता हुआ जमाना

नीचे के पत्ते, धीरे धीरे,
पीले पड़ते जा रहे है
उपर नये कोपलें आ रही हैं

कुछ पत्ते झड़ने से दुःख होता है
आँखें गीली हो जाती है

कुछ पत्ते प्यारे हैं
ये सोचकर भी
दिल दहल जाता है
कि एक दिन
ये भी टूटकर गिर जायेंगे

पर शायद यही
प्रकृति का नियम है

24 comments:

  1. wahhh coral ji
    कुछ पत्ते झड़ने से दुःख होता है
    आँखें गीली हो जाती है

    कुछ पत्ते प्यारे हैं
    ये सोचकर भी
    दिल दहल जाता है
    कि एक दिन
    ये भी टूटकर गिर जायेंगे

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  2. चेहरा निराशा से पीला न होने दें।

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  3. कविता में भाव अच्‍छे हैं। कविता का प्रयास अच्‍छा है।
    आपने ऊपर अपने ब्‍लाग में जो पंक्ति लिखी है उसमें मित्रोंगनो की जगह मित्रो ही पर्याप्‍त है। या फिर उसे मित्रगणों लिखें। अनुस्‍वार की एक-दो गलतियां और हैं,उन्‍हें भी ठीक कर लें।

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  4. कुछ पत्ते प्यारे हैं
    ये सोचकर भी
    दिल दहल जाता है
    कि एक दिन
    ये भी टूटकर गिर जायेंगे
    ----------------------------
    बहुत ही सुंदर
    भाव भी अर्थ भी..... आभार

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  5. क्या करें, प्रकृति का नियम ही यही है! बस यूं ही इसे पढकर स्मरण हो आया "द्रुत झड़ो जगत के जीर्ण पात"
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्‍ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

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  6. इक अरसे पहले कुछ ऐसी पंक्तियाँ लिखी थी ...
    कुछ ठीक से याद नहीं ...कभी कभी पुराणी डायरी निकलती हूँ तो सामने पद जतिन हैं ....

    है प्रकृति का यही नियम
    पाना , खोना और फिर
    इक नया जन्म ...

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  7. .

    Dear Coral,

    काल का चक्र घूमता रहता है । समय के साथ सब कुछ पीछे छूटता जाता है। सब कुछ नाशवान है । यही श्रृष्टि का नियम है। इसलिए कहा गया है...

    " Enjoy every moment of your life as if there is no tomorrow "

    ZEAL
    ..

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  8. पर शायद यही
    प्रकृति का नियम है


    -शायद!! बहुत जबरदस्त भाव!

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  9. यही तो ज़िन्दगी का शाश्वत सत्य है।

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  10. patta aur admi what a composition.
    very nice.

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  11. लीजिये आपके अनुरोध पे पुरानी डायरी से वो कविता . ढूढ़ लाई हूँ .....

    दिनकर...
    छुप जाता है जब
    संध्या के आगोश में
    ओढा देती है रजनी
    झिलमिल तारों का आँचल
    सुनहरी सय्या पर
    होता मिलन ..
    कुछ पल के लिए
    खो जाते दोनों ...
    एक दुसरे में रत
    भोर की लालिमा पड़ती
    मुखमंडल पर
    होते जुदा
    इक नया संसार बसाने
    जन्म होता ...
    इक नए इतिहास का ....
    है प्रकृति का यही निया
    पाना-खोना और
    इक नया जन्म .....

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  12. निया को नियम पढ़ें ...

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  13. वाह! बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! आखिर यही प्रकृति का नियम है ! सूखे पत्ते झड़ जाते हैं फिर नए पत्ते दिखाई देते हैं!

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  14. हरकीरत जी ...आपकी रचना तो बहुत सुन्दर है ...

    आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

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  15. इतनी टिप्पणी के बाद मेरे पास एक ही शब्द है.....अच्छी कविता...

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  16. yehi prakruti ka niyem hai.shayed jivan ka bhi. sunder rachna. mere blog par aane ka dhnyavad.

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  17. ! बहुत खूबसूरत रचना !

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टिप्पणी के लिए आपका बहुत धन्यवाद. आपके विचारों का स्वागत है ...

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