कुछ दिनों पहले की खबर थी कि इरान कुछ ही दिनों में Global Nuclear Club का एक सदस्य बनने जा रहा है । यह एक राष्ट्र के उन्नती के लिये अच्छी खबर है । अमेरिका के विरोध के बावजूद जिस तरह से डटकर काम किया गया है, इससे उनका राष्ट्र प्रेम दीखता है ।
पता नहीं मेरा देश कब जागेगा? हमारे देश का जनता अपने देश में परमाणु उर्जा संयंत्र लगाने का भरपूर विरोध करते रहे हैं । जहाँ कहीं भी यूरेनियम खनिज का खनन कार्य शुरू करने कि कोशिश की जाति है, जनता को उसके खिलाफ भड़काया जाता है और काम बंद कर दिया जाता है । भोली भाली जनता को गलत सुचना के आधार पर भटकना बहुत आसान है । परमाणु उर्जा से सम्बंधित विभागों में काम करने वालों के अलावा ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें परमाणु/नाभिकीय उर्जा के बारे में जानकारी है ? बहुत ही कम लोग जानते हैं कि परमाणु ऊर्जा एक ऐसा स्रोत है जो की उत्सर्जन मुक्त है।
मै जानती हू जब मैं ये कहूँगी, तो नाजाने कितने लोग कहेंगे कि नहीं, आज तक उसकी वजह से मानवता का कितना नुकसान हुआ है । हिरोशिमा और नागासाकी को हम नहीं भूले है, ..... पर आये दिन जो बम फ़ट रहे है वो तो किसी और चिजो से बने है । Dynamite से आप घर उड़ा सकते हैं, तो क्या दुनिया के सारे खानों में उसका इस्तमाल बंद हो गया है ।
हाँ, इस बात का दूसरा समाधान यह है हम जैव-ईंधन (biofuel), सौरउर्जा और wind turbines का उपयोग कर सकते है पर इसके कुछ परिसीमाए है । ये बहुत ही महंगे उर्जा स्रोत हैं ।
आज जब फ्रांस जाकर उनकी फास्ट ट्रेन का टिकिट बुक करते हैं, तो कितना अच्छा लगता है की हम तेज तथा प्रदुषण रहित रेल में बैठे है। फ्रांस ऐसा देश है जहा ७२ % बिजली उत्पादन परमाणु ऊर्जा से होता है। हम जो पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस उपयोगिता में लाते है वो एक दिन खत्म हो जायेंगे तब तो हमें कोई विकल्प सामने लाना होगा । और भूल रहे हैं कि इसके चलते हम कितना प्रदुषण पृथ्वी पर फैला रहे है ।
ये सब बातें हमारे पर्यावरण तथा सभ्यता को बहुत क्षति पहुंचा रही है । हमारे नेतागण ये बाते अच्छी जानते है पर इस तरफ ध्यान देने कि जगह वह अपनी रोटी सेंकने में व्यस्त रहते है ! (they are happy to support fuel lobbies).
जब हमारा संपूर्ण ब्रम्हाण्ड परमाणु उर्जा पर चलता है तो हम क्यूँ नहीं ?
nice post
ReplyDeleteयह मुद्दा शायद इतना आसान नहीं है। पक्ष विपक्ष दोनों तरफ बहुत से तर्क हैं।
ReplyDelete@राजेश उत्साहीजी
ReplyDeleteहम आपके तर्कों का स्वागत करते है !
@अभिषेक
ReplyDeleteधन्यवाद ...पर आप भी NICE POST कि जगह अपना तर्क/ या राय देते तो जदाद अच्छा लगता !
कुछ लोग जो परमाणु ऊर्जा का विरोध करते हैं उसका एक बड़ा कारण रूस आदि में भी इन संयंत्रो में हुई दुर्घटनाएं हैं. अपने यहाँ "चलता है" के नाम पर जो लापरवाही बरती जाती है, वह बड़ी घातक हो सकती है.
ReplyDeleteChernobyl या फिर three mile island जैसी दुर्घटनाएं विरल हैं । दुर्घटनाएं कहाँ नहीं होती हैं ... क्या कोयले के खानों या ताप विद्युत केन्द्रों में दुर्घटनाएं नहीं होती हैं, या फिर oil platforms पर नहीं होती हैं ? आज तक परमाणु उर्जा संयंत्रों में हुई दुर्घटनाओं में मरने वाले जितने लोग हैं उससे कहीं ज्यादा लोग केवल एक साल के अंदर कोयले के खानों में हुए दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं । तो क्या कोयले के खान बंद हो जाते हैं या हम कोयला इस्तमाल करना बंद कर देते हैं ?
ReplyDeleteरही बात "चलता है" मनोवृत्ति की, तो यही कारण है कि कोयले के खानों में इतने लोग मरते हैं .... कम से कम नाभिकीय उर्जा संयंत्रों को बनाने वाले उच्च शिक्षित और निहायत दक्ष लोग हैं न कि कोयले के खान चलाने वाले अर्धशिक्षित लोग ।
बिग बैंग थेओरी के अनुसार पहले सिर्फ एक बिंदु था फिर एक महा विस्फोट के बाद ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ . कुछ पोस्ट पहले मैंने भारतीय दर्शन के अनुसार श्रष्टि निर्माण के बारे में उल्लेख किया था . ये भी यही बात कहती है . पर जहा बिग बैंग थेओरी पर अभी श्रष्टि निर्माण क्रम के बारे में शोध चल रहा है वही भारतीय दर्शन इस की पूर्ण व्याख्या करता है . आगे की पोस्ट में ये बात स्पष्ट हो जाएँगी .
ReplyDeleteदेश की उन्नति परमाणु ऊर्जा पर ही निर्भर है ये बात सब को समझ लेनी चाहिए वर्ना हम बहुत पीछे रह जायेंगे .
ReplyDeleteइतना अच्छा मुद्दा उठाने के लिए आप का धन्यवाद
अभिषेक जी, आपने शायद मेरा प्रोफाइल नहीं पढ़ा है ... मै पेशे से geologist हू .... I know what Big Bang theory is .... It is one of the most accepted theories of the origin of the Universe ... However, it is not the answer to the question I had asked...
ReplyDelete@abhishek
ReplyDeleteआपने सही कहा है ...
इस मामले में मैं तो विपक्षी खेमें से हूं।
ReplyDeleteभारत के सन्दर्भ में जिस बड़े स्तर पर विदेशी पूंजी निवेश के लिये यह क्षेत्र खोला जा रहा है उस का कारण परमाणु ऊर्जा की जरुरत से अधिक, अमरेकी अर्थव्यव्स्था को सुधारने का लक्ष्य है।
आज देश में थोरियम के भंडार हैं जिस कारण यदि प्लुटोनियम पर आधारित तकनीकी अपनायी जाती तो देश ऊर्जा सुरक्षा की ओर बडता, परंतु हम यूरेनियम तकनीकी आयात करने वाले हैं जिस कारण सदैव NSG (NUCLEAR SUPPLIER GROUP)के अधीन रहेंगें।
जरुरत है कि पहले हाएडिल पावर का समुचित दोहन किया जाता और फिर नाभकीय ऊर्जा के लिये प्रयास किये जाते। भारत गरीब देश है और 35 करोड रुपये प्रति मेघावाट का खर्चा बहुत अधिक है जब सस्ता ग्रीन विकल्प हाइड्रो पावर के रूप मे हमारे पास है अभी, लागत है मात्र 4 करोड़ प्रति मेघावाट ?
मेरा देश कुछ अमीरों की बपोती बनकर रह गया है जो गरीबों का हक मारकर अय्याशी कर रहें हैं। उनके दुधिया रोशनी में होने वाले आयोजनों के लिये इतनी मंहंगी बिजली और वो भी विदेशीयों को फायदा पहुचाने के लिये, देश की समप्रभुता को गिरवी रख कर ?
इसके सभी आयामों का विश्लेषण करता एक पूरा लेख जल्द की हम पोस्ट करंगे!
@ सम्वेदना के स्वर
ReplyDeleteआपने जो तर्क रखा है वो हमेशा से ही नाभिकीय उर्जा के खिलाफ रखे गए हैं ... पर चलिए थोडा बारीकी से इन बातों को देखते हैं ...
पहली बात तो जिस थोरियम के भण्डार कि बात हम कर रहे हैं उसके लिए फास्ट ब्रीडर रिअक्टर का सफल होना बहुत ज़रूरी है, जो कि अब तक केवल ही परिक्षण के अवस्था (testing phase) में ही है । कलपक्कम में थोरियम रिअक्टर के test version (FBTR) ही बन रहा है और वो भी कितने सालों से । बन जाने के बाद भी व्यावसायिक स्तर पर सफल होने में पता नहीं और कितने साल, और कितने कोशिश लग जायेंगे । इस वक्त हमारे पास जो टेक्निक उपलब्ध है वो है uranium रिअक्टर जो कि एक साफ़ सुथरा उर्जा का स्रोत है ।
रही बात हाएडिल पावर की तो ये ज़रूर है कि इससे जो उर्जा प्राप्त होती है वो सस्ती है पर जो उर्जा अभी सस्ती लग रही है वो बाद में महँगी पड़ती है ... बड़े बड़े बाँध से पर्यावरण को जो नुकसान पहुँच रहा है वो अपूरणीय है ... इस बात से हम भाली भाँती परिचित हैं ... लाखों हेक्टर जंगलों का सफाया होना, हजारों गांव का उजड़ना, जंगलों के जानवरों का घर बर्बाद होना, downstream में नदियों का सुखकर कई जगह पर अकाल जैसी स्तिथि का उत्पन्न होना इत्यादि (मैं और कई समस्याएं गिना सकती हूँ, पर मूल बात से भटकना नहीं चाहती) क्या ये सच में सस्ती है ?
@ सम्वेदना के स्वर
ReplyDelete" मेरा देश कुछ अमीरों की बपोती बनकर रह गया है जो गरीबों का हक मारकर अय्याशी कर रहें हैं। उनके दुधिया रोशनी में होने वाले आयोजनों के लिये इतनी मंहंगी बिजली और वो भी विदेशीयों को फायदा पहुचाने के लिये, देश की समप्रभुता को गिरवी रख कर ?"
हाएडिल पावर के लिए जो बड़े बड़े बाँध बन रहे हैं और हजारों गरीब गांववासी विस्थापित बन रहे हैं, उनका क्या ? क्या उनको सही मुआबजा मिल रहा है ? क्या उनकी जिंदगी बर्बाद नहीं हो रही है ? ये सब project भी बड़ी बड़ी कंपनियां ही बना रही हैं ...
हमारे देश में यूरेनियम कम है, इसलिए बाहर से लाना ज़रूरी है ... और ये सोच कि इससे हम बाहर के देशों का गुलाम बन जायेंगे ये सही नहीं है ... फ्रांस, जापान, अमेरिका, इत्यादि देश में नाभिकीय उर्जा ही उर्जा का बहुत बड़ा स्रोत है ... अमेरिका को छोड़ दिया जाये तो न तो फ्रांस के पास नाही जापान के पास कोई यूरेनियम के भण्डार है ... फिर ये लोग इतने आगे हैं ... क्यूंकि ये सही समय पर नाभिकीय उर्जा का महत्वा समझ गए थे और दुनिया भर में कई जगह पर (कई देश में) अपने यूरेनियम के खान खोल लिए थे ... आज ज़रूरत है व्यश्विकरण की ... फैलने की ... अपने आप में सिमटने का युग चला गया है ...
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ReplyDeleteI am indeed in favour of this project but I have some serious doubts --
- It's an expensive affair.
- Safety and security issues.
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.इस मुद्दे पर अवश्य ही बुद्धिजीवियों के बीच एक संवाद या चर्चा अवश्य ही होनी चाहिए .
ReplyDeleteदोनों ही तरफ के पक्ष के अपने अपने तर्क है . इस पर मंथन ही समस्या का सही हाल निकाल सकती है .
मेरे कुछ प्रश्न है .
(१) देश को विकास के लिए ऊर्जा की काफी अधिक ऊर्जा की जरुरत है .क्या परमाणु ऊर्जा के आलावा कोई और विकल्प है जो काफी बड़ी मात्र में ऊर्जा की जरुरत पूरी कर सके ? सस्ती और महगी तो इस के बाद की बात है
(२) जब तक थोरियम की तकनीक विकसित नही हो जाती . तब तक ऊर्जा की जरुर भारत में कैसे पूरी होगी .क्या आयातित परमाणु ऊर्जा अनिवार्य है ?
(३) क्या परमाणु ऊर्जा वास्तव में महगी है ? पूर्ण आकलन के बाद ही उत्तर संभव है न की तात्कालिक
(४) भोपाल त्रासदी अभी तक लोगो को याद है .रूस , चीन आदि देशो में ऐसी त्रासदी हो चुकी है तो क्या आगे सुरक्षा की गारंटी क्या है ?
sahi vishay par baat ki Tripti ji.... aapse sahmat..
ReplyDeleteशायद ईरान की जगह ईराक लिख गयी हैं आप। ईरान का केस उसकी कुख्याति, बडबोलापन और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम से सम्बद्धता के कारण बिगडा है। अलबत्ता ऊर्जा के मामले में आपकी बात से पूरी सहमति है। कामकाज सही हो तो परमाणु ऊर्जा न केवल प्रदूषण मुक्त है बल्कि हाइडिल आदि सीमित साधनों के मुकाबले कहीं वृहत और स्केलेबल भी है। देशहित देखने वाला कोई भी व्यक्ति इसके अन्धविरोध से पहले हज़ार बार सोचेगा।
ReplyDelete"हाएडिल पावर के लिए जो बड़े बड़े बाँध बन रहे हैं और हजारों गरीब गांववासी विस्थापित बन रहे हैं, उनका क्या ? क्या उनको सही मुआबजा मिल रहा है ? क्या उनकी जिंदगी बर्बाद नहीं हो रही है ?"
ReplyDeleteयह भी एक प्रमुख तथ्य है जिसे कोई भी मनुष्य नकार नहीं सकता है। मैने अपनी कहानी बांधों को तोड़ दो में इसी समस्या पर ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया था।
@abhishek
ReplyDeleteमैंने पहले ही इस बारे में बोला है ----
१. हाँ, इस बात का दूसरा समाधान यह है हम हायडल, जैव-ईंधन (biofuel), सौरउर्जा और wind turbines का उपयोग कर सकते है पर इसके कुछ परिसीमाए है ।
२. हमारे देश में यूरेनियम कम है, इसलिए बाहर से लाना ज़रूरी है ... और ये सोच कि इससे हम बाहर के देशों का गुलाम बन जायेंगे ये सही नहीं है ... फ्रांस, जापान, अमेरिका, इत्यादि देश में नाभिकीय उर्जा ही उर्जा का बहुत बड़ा स्रोत है ... अमेरिका को छोड़ दिया जाये तो न तो फ्रांस के पास नाही जापान के पास कोई यूरेनियम के भण्डार है ... फिर ये लोग इतने आगे हैं ... क्यूंकि ये सही समय पर नाभिकीय उर्जा का महत्वा समझ गए थे और दुनिया भर में कई जगह पर (कई देश में) अपने यूरेनियम के खान खोल लिए थे ... आज ज़रूरत है व्यश्विकरण की ... फैलने की ... अपने आप में सिमटने का युग चला गया है ...
३. भोपाल त्रासदी से परमाणु ऊर्जा का कोई लेना नहीं है .....
Chernobyl या फिर three mile island जैसी दुर्घटनाएं विरल हैं । दुर्घटनाएं कहाँ नहीं होती हैं ... क्या कोयले के खानों या ताप विद्युत केन्द्रों में दुर्घटनाएं नहीं होती हैं, या फिर oil platforms पर नहीं होती हैं ? आज तक परमाणु उर्जा संयंत्रों में हुई दुर्घटनाओं में मरने वाले जितने लोग हैं उससे कहीं ज्यादा लोग केवल एक साल के अंदर कोयले के खानों में हुए दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं । तो क्या कोयले के खान बंद हो जाते हैं या हम कोयला इस्तमाल करना बंद कर देते हैं ? और नाभिकीय उर्जा संयंत्रों को बनाने वाले उच्च शिक्षित और निहायत दक्ष लोग हैं न कि कोयले के खान चलाने वाले अर्धशिक्षित लोग ।
@Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteजी आपका बहुत शुक्रिया आपने बड़ी गलती कि तरफ द्यान दिला दिया हमने वो गलती सुधर ली है !
@दिव्या
ReplyDeleteहमने पहले कि टीप्पनियोमे अपघातो के बारे में कहा है I
हा नाभिकीय उर्जा , ताप विद्युत (Thermal) से थोड़ी महेंगी है पर क्या हम भूल रहे है कि ताप विद्युत में कितनी खामिय है !
सबसे पहले तो हमारी जनसंख्या अभी हमारे पास पर्याप्त कोयला भंडार है पर ये कब तक पुरेंगे?
दूसरा क्या हम जानते नहीं कोयला खाने कितना पर्यावरण को हानि पहुचाती है ! आप acid rain, fly ash इन संज्ञा से वाकिफ ही होंगी ! कोयले से उत्पन्न धुआ ना जाने कितनी बिमारिया पैदा करता है ! और दुनिया में सबसे जादा अपघात कोयला खादनो मे ही होते है !
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ReplyDeleteCoral,
You are talking about pollution part. I am more worried about the safety measures and responsibility part of officials and government.
After the Bhopal tragedy incidence , I have lost faith in our government.
In case of any tragedy , the victims will suffer . No one will bother about them .
The mindset of people in power is in error and they are very insensitive towards the grievances of common people.
Inspite of this project being very useful and helpful in the development of our country , still i see the 'sense of responsibility ' missing in our folk .
That warms me to vote in favor of this project.
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निसन्देह परमाणु ऊर्जा बहुत उपयोगी है पर ऊर्जा उत्पन्न करना विकेन्द्रीकत हो वह और भी अच्छा। हमें अपनी ऊर्जा आवश्यकतायें भी कम करनी होंगी।
ReplyDeleteतृप्ति जी,आप की पोस्ट और आपकी प्रति टिप्पणियों को पढ़ कर मैं सिर्फ यही कह सकता हूँ कि मैं आप की बातों और तर्कों से सहमत हूँ.व्यक्तिगत रूप से मुझे इस विषय में ज्यादा जानकारी नहीं है.
ReplyDeleteनिःसंदेस परमाणु ऊर्जा ही अद्वितीय विकल्प है इतनी बड़ी ऊर्जा की जरुरत पूरी करने के लिए .
ReplyDeleteविकास चाहिए तो अपने पैरो में कुल्हाड़ी मारने की बजाय अवसर को सार्थक करे .
देश में और भी परमाणु रियक्टर है अब तक कितनी दुर्घटनाये हुई ?????????
सस्ती और महगी की बात तो तब आती है जब उपलब्धता भरपूर हो .
मैं सुरु से ही परमाणु समझौते का समर्थक रहा हू .पता नही क्यों इस का इतना विरोध हो रहा है .
चीन से हमें सीखना चाहिए . जो हमसे बहुत आगे निकल गया और हम अब भी आपस में कबड्डी खेल रहे है . यही हाल रहा तो हम पिछड़े देशो के सूचि में प्रथम स्थान पर होंगे
@ Divya,
ReplyDeleteThe Lack of responsibility on the part of government officials is there everywhere. But you forget that Nuclear Power Plants are built by highly educated, highly specialized and experienced men and not government officials. The chance of an accident in case of a Atomic Power Plant is much less than that of a coal mine, a chemical industry, a thermal power plant or even a Hydel project. You cannot ignore the pollution part that easily. It is of foremost concern. Like I have already stated in previous comments, more people die every year due to pollution and accidents in coal mines than all the deaths combined till now in Atomic Power Plants.
The big drawback for Nuclear Power is if it goes into the hands of rogue states like Iran or Pakistan, they may develop Nuclear Weapons from it. The question is whether or not we want to be Nuclear Capable. If Pakistan develops great Nuclear Weapons Power, would it be wise to be left behind, so that one fine morning Pakistan may decide that it wants to drop a Bomb on New Delhi and wipe out its entire population and we are left wringing our hands that we did not take right steps at the right time?
If every one keeps this attitude then it will be impossible to have any kind of development.
Every month there are rail accidents and thousands die. So, have we stopped traveling by train ?
I can understand there are lots of holes in our system, but have you ever thought about who is responsible for this system... who made this? It is people like us. People who always have negative thoughts about development. Who do not want things to change.
We have to change our thinking. We have to take the right steps at the right time, and if that means Nuclear power for a better and cleaner tomorrow, then why not?
Isn't it strange that, 90% of the blog world is busy discussing about religion and supernatural things rather than actually discuss about the problems and issues facing our society, about things that we should do, about the hard decisions that we, as a whole, have to make?
@यश(वन्त)जी
ReplyDeleteआपका कहना सही है जादातर आम आदमी इसे नहीं जानते और नाही बहुत कुछ जाने में रूचि रखते है ..... और पुरुष वर्ग तो थोडा बहुत इस बारे में बोल लेता है चाहे गलत ही सही पर मेरी प्यारी बहने तो बस चुप्पी साधे बैठी रहती है ........
मै आपकी दाद देती हू कि आपने कहने कि हिम्मत दिखाई कि आप इस विषय के बारे में नहीं जानते ..... मेरा विचारसे जादा न सही पर अब आप थोड़े तो ससमझ पाए होंगे कि परमाणु उर्जा क्या है !
यही तो दुःख कि बात है न हम जानते है नहीं जाननेकी कोशिश करते है ....फिर गलत लोगो कि बातों में आकर अपने ही देश की व्यवस्था को ताने कसते है .....
@अभिषेक
ReplyDeleteनिसंदेह .........
Trupti Ji,
ReplyDeleteNamaste,
Bahut sunder lekh aur hamare paas to gas aur perolium padarthon ke sadhan hain woh khatm ho rahe hain .....
आज जब फ्रांस जाकर उनकी फास्ट ट्रेन का टिकिट बुक करते हैं, तो कितना अच्छा लगता है की हम तेज तथा प्रदुषण रहित रेल में बैठे है। फ्रांस ऐसा देश है जहा ७२ % बिजली उत्पादन परमाणु ऊर्जा से होता है। हम जो पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस उपयोगिता में लाते है वो एक दिन खत्म हो जायेंगे तब तो हमें कोई विकल्प सामने लाना होगा । और भूल रहे हैं कि इसके चलते हम कितना प्रदुषण पृथ्वी पर फैला रहे है ।
Is mahatvapurn jaankaari ke liye dhanyavaad .....
Hamare neta akqsar aag lagne ke baad kuva khodtein hain .....ye hamara durbhagya hai hum swatantra bharat mein in netaon ki manmani ke shikaar hain.
Surinder Ratti
Mumbai
@SURINDER RATTIji
ReplyDeleteये बहुत ही शर्मजनक बात है पर ये नेता भी हम जादातर आवेश में आकर चुनते है .... उनमेसे कितने नेता ओ के पास सिर्फ नाम कि डिग्री होती है जो उन्हें बड़ी आसानीसे मिलती है ! नहीं उन्हें किसी विषय बारे में अच्छे से ध्यान होता है और अगर हो भी तो वो तब तक उधर रुख नहीं करते जब तक उनकी कोई मज़बूरी या कोई बड़ा फायदा न हो !
जनहित तो सबसे आखिर में किया जाने वाला कार्यक्रम होता है !
ये रवैया हमारे देश को बहुत नुकसान पहुचा रहा है!
@ Coral ji
ReplyDeleteयह चर्चा बहुत ही सार्थक है, और हमारे विचार से सही वैज्ञानिक सोच वही है जो पक्ष और विपक्ष दोनों को समझते हुए आगे कदम बढाये।
परमाणु उर्जा के विकल्प को नकार देना हमारा पक्ष नहीं है, लेकिन सिर्फ उर्जा की आवश्यक्ता का हौआ खड़ा करके कहीं हम किसी और देश के हित तो नहीं साध रहे यह देखना भी जरुरी है। पहले यह मानें कि अपना देश गरीब है, resources की बेहद कमी है। अर्थव्यव्स्था का Trickle down effect पर आधारित यह समाधान अधिकांश भारतीयों को उतरन और खुर्चन ही दे सकता है। Food subsidy के नाम पर 35 किलो अनाज तक सबको देने की हालत में नहीं है सरकार। ऐसे में सैकड़ॉ बिलयन का यह खेल भारत के लिये बहुत महंगा है, इंडिया को भले ही सस्ता सौदा लगे।
अनेको peripheral issues है जिन्हे लिखना अभी सम्भव नहीं हो पा रहा पर चर्चा जारी रखी जाये अनेकानेक रुपों में।
फिलहाल इतना ही की :-
आज देश में विधुत ऊर्जा का कुल उत्पादन = 1,57,299 मेघावाट
2020 तक नाभकीय ऊर्जा का लक्ष्य उत्पादन = 20,000 मेघावाट
जबकि 2020 तक विधुत ऊर्जा का उत्पादन लक्ष्य 6 से 8 लाख मेघावाट हो जायेगा।
भारत में नाभकीय ऊर्जा से उत्पादन कुल ऊर्जा का मात्र 4.2% है जिसे अगले 25 वर्षों में बढाकर 9% तक करने की योजना बतायी जाती है। अब इस परिपेक्ष्य में नाभकीय उर्जा से कोई इतना बड़ा चमत्कार नहीं कर सकता है।
very nice
ReplyDeleteIndia also have nuclear power plant and its running very well. Japan's accidents occurred by tsunami: plants built there are old one and doesn't have latest technology used. In India, we are using latest technology. so, its will not effect by any natural calamities.
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