परमाणु उर्जा, एक ज़रूरी विकल्प !
मेरी पिछली पोस्ट "फिर से हरियाली की ओर........support Nuclear Power" में कई लोगों ने अत्यंत ज़रूरी और सार्थक सवाल उठाये जिनका उत्तर देने में मुझे अत्यंत आनंद का अनुभव हुआ । मैं बहुत खुश हूँ कि संवेदना के स्वर, zeal, अभिषेक, PN Subramanian, Smart Indian - स्मार्ट इंडियन इत्यादि ने इस चर्चा में रूचि दिखाई और कई महत्वपूर्ण बातों को सामने लाने में सहायता की ।
इसलिए मैंने इस विषय में एक और पोस्ट प्रकाशित करना उचित समझा । यह पोस्ट उन सवालों का जवाब देने की एक कोशिश है जो पिछले पोस्ट में सामने रखा गया है । मैं चाहूंगी कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस चर्चा में सम्मिलित हो । इससे न केवल चर्चा सार्थक होगी, बल्कि कई लोगों को इस बारे में पता चलेगा और जागरूकता में वृद्धि होगी ।
यह कहना तो गलत होगा कि ताप विद्युत या जल विद्युत को बंद कर दिया जाय । २००७ के आंकड़ों के अनुसार भारत में टोटल उर्जा खपत में कोयले से उत्पन्न उर्जा ४० %, पेट्रोल उर्जा २४ %, प्राकृतिक गैस ६ %, हायडल १.८ % और परमाणु उर्जा ०.७ % है । यद्यपि भारत एक प्रमुख कोयला उत्पादक देश है, फिरभी ३० % उर्जा आयातित इंधन से मिलता है । क्या अब हम दूसरे देशों के गुलाम हो गए हैं ? केवल यूरेनियम आयात करने से गुलाम बन जायेंगे यह सोच बिलकुल गलत है ।
उर्जा की आवश्यकता एक हौवा नहीं है, एक ऐसा सच है जो हमारे सामने खड़ा है । इस सच का सामना करना ही होगा ।
भारत हमेशा से ही परमाणु उर्जा कार्यक्रम में पीछे रहा है । यही कारण है कि आज हमारे देश उर्जा पर्याप्तता में पीछे रह गया है । जैसे जैसे हमारा कोयला और तेल के भंडार खतम होते जायेंगे, हमें वैकल्पिक उर्जा संसाधन ढूँढने ही होंगे । यह उर्जा स्रोत, परमाणु उर्जा हो सकता है, सौर उर्जा हो सकता है, हाइडल पॉवर, पवन उर्जा, जैव इंधन इत्यादि हैं । सवाल यह है कि इसमें से कौन सा विकल्प सस्ता और पर्यावरण के दृष्टि से निरापद है ।
फ्रांस, जापान जैसे देश परमाणु उर्जा इसलिए नहीं अपनाये हैं कि यह ताप विद्युत से सस्ता है, बल्कि इसलिए कि यह एक साफ़ सुथरा उर्जा स्रोत है ।
परमाणु संयंत्रों से उत्पन्न अपशिष्ट खतरनाक हो सकते हैं, पर उनका सही ढंग से निबटारा करना संभव है । ऐसी तकनीक विकसित की जा चुकी है । पर ताप्प विद्युत केन्द्रों से उत्पन्न अपशिष्ट (waste) जैसे कि राख, धुआं, इत्यादि को आप कैसे संभालेंगे? यह हर कोई जानता है कि कोयले के खान या ताप विद्युत केन्द्रों के आस पास रहने वाले लोगों में lung कैंसर बहुतायत में पाए जाते हैं ।
मैं फिर दोहराती हूँ, बात केवल उर्जा की ज़रूरत की नहीं है, सवाल एक साफ़ सुथरा उर्जा स्रोत का है ...
मै भी यह मानती हूँ कि भारत का जो परमाणु उर्जा कार्यक्रम है वो सही मायने में काफी नहीं है । पर शायद यह ज्यादातर लोगों को पता न हो कि दरअसल हमारे देश में जो थोरियम का भंडार है, उसे इस्तमाल करने के लिए भी हमारे पास बहुत सारे यूरेनियम रिअक्टर होना ज़रूरी है । हमारे देश का जो त्रि-चरणीय परमाणु उर्जा कार्यक्रम है उसके तहत पहले हमें यूरेनियम रिअक्टर चाहिए, फिर हम दुसरे चरण में प्लूटोनियम रिअक्टर का इस्तमाल करेंगे और तीसरा तथा आखरी चरण में हम थोरियम रिअक्टर का इस्तमाल कर पाएंगे । पर इस तरह का FBR (fast breeder reactor) बनाने से पहले, हमें बहुत सारा यूरेनियम की ज़रूरत है । यदि हम आज चूक गए तो शायद हम कभी इस थोरियम स्रोत का इस्तमाल नहीं कर पाएंगे । मैं यहाँ इस परमाणु उर्जा कार्यक्रम को विस्तारित रूप से वर्णन नहीं कर सकती । उसके लिए आपको निम्नलिखित लिंक में जाकर खुद पढ़ना पड़ेगा ।
http://www.dae.gov.in/publ/3rdstage.pdf
http://www.dae.gov.in/power/npcil.htm
एक ज़रूरी बात और । कई लोग ऐसे हैं जो मेरी पोस्ट को पढते तो हैं पर यह सोचकर चुप चाप उलटे पांव लौट जाते हैं कि "भाई, हमें तो इस बारे में कुछ नहीं पता, क्या लिखें?" । ऐसे दोस्तों से यह कहना चाहूंगी कि ज़रूरी नहीं है कि ये बातें हर किसी को पता हो, पर आप जानने कि कोशिश तो कीजिये । आपके मन में कई सवाल उठाना स्वाभाविक है । मुझे अत्यंत हर्ष होगा इन सवालों के जवाब देने में ।
इस में दो मत नहीं है की हमें वैकल्पिक उर्जा के स्रोत ढूँढने ही पड़ेंगे. थोरियम के बारे में सुन रखा है की हमारे समुद्र तट की रेत में ही विशाल भण्डार हैं.
ReplyDelete@ सुब्रमण्यम जी
ReplyDeleteआपने एकदम सही सुना है, पर थोरियम रिअक्टर तकनीक इस्तमाल करने के लिए आज हमें यूरेनियम रिअक्टर चाहिए ... यह एक तकनिकी ज़रूरत है ...
अपशिष्टो के निस्तारण को सुनिश्चित किये बिना ऊर्जा के जितने भी स्रोतों का दोहन हुआ है वह अंततोगत्वा भयावह स्वरूप में आकर विचलित करते हुए से प्रतीत होते हैं .. सावधान रहना ही होगा.
ReplyDeleteसार्थक लेख
@ वर्मा जी
ReplyDeleteआपने बिलकुल सत्य कहा ... उर्जा स्रोत चाहे कोई भी हो सावधानी तो वरतनी ही है ...
पर किसी उर्जा स्रोत से डरकर उसे अपनाना ही नहीं है ... ये तो कोई तर्क नहीं है ...
चर्चा बहुत ही सार्थक है और इसके आयोजन के लिये आपको साधुवाद।
ReplyDeleteआपकी पिछली पोस्ट पर दिया गया हमारा निम्न कथन पुन: उल्लेखित किया जा रहा है, जो महत्त्वपूर्ण था।
परमाणु उर्जा के विकल्प को सिरे से नकार देना हमारा पक्ष नहीं है, लेकिन सिर्फ उर्जा की आवश्यक्ता का हौआ खड़ा करके कहीं हम किसी और देश के हित तो नहीं साध रहे, यह देखना भी जरुरी है। पहले यह मानें कि अपना देश गरीब है, resources की बेहद कमी है। अर्थव्यव्स्था का Trickle down effect पर आधारित यह समाधान अधिकांश भारतीयों को उतरन और खुर्चन ही दे सकता है। Food subsidy के नाम पर 35 किलो अनाज तक सबको देने की हालत में नहीं है सरकार। ऐसे में सैकड़ॉ बिलयन का यह खेल भारत के लिये बहुत महंगा है, इंडिया को भले ही सस्ता सौदा लगे।
बात सिर्फ परमाणु उर्जा लेने से देश के गुलाम होने की नहीं है, हमारी वैज्ञानिक बुद्धि को सामरिक और राजनैतिक परिपेक्ष भी समझने की आदत डालनी चाहिये। आपको याद है? भारत-ईरान गैस पाईप लाईन एक बेहतरीन विकल्प था जिसे अब कोई याद नहीं करता? जिस हडबडी में 1 2 3 एग्रीमैंट साइन किया गया, “वोट फार कैश” से सरकार बचायी गयी? भारतीय संसद को आज तक विश्वास में नहीं लिया गया यह कहकर कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दो पर निर्णय लेने के लिये वो जनता द्वारा अधिकृत हैं! (यह भी जान लें इन्हें कुल मतदातओं का 18% मत मिला हैं, जिस दम पर यह सब थोपा जा रहा है।
ReplyDeleteसवाल यह नहीं है कि परमाणु उर्जा को देश को अपनाना चाहिये या नहीं वरन सवाल यह है कि उर्जा किस तरह हासिल की जायेगी? किसके लिये ? और किस कीमत पर?
मात्र 9% उर्जा के लिये इतनी हाय तौबा ?
जरा मजाकिया तौर पर सोचे, विदर्भ की कलावती के बेटे के स्कूटर की जगह बी.एम.डब्लू बेहतर न होगी ? कौन मूर्ख कहेगा कि बी.एम.डब्लू से बेहतर है स्कूटर? अपनी सारी जमीन किसी एस.ई. ज़ेड को बेच कर कलावती बी.एम.डब्लू ले भी ले पर फिर उसके बाद?
ReplyDeleteअपने घर के बजट को बनाते समय हम घर के सभी सदस्यों को ध्यान में रखतें है, न? फिर देश एक बड़ा परिवार ही तो है? इतनी भारी मात्रा में निवेश ? जब परिवार मूलभूत जरुरतों के लिये तरस रहा है ? एक मोटे अनुमान के अनुसार 500 बिलयन डालर का खेल है यह सब ?
फिर इस उत्पादित बिजली से आप दुधिया रोशनी में खेल कूद करायेंगे और वातानुकूलित शापिंग मालँ में सैर करेंगे? या यह भारत के गावँ देहातों को शिक्षा और स्वास्थ के प्रसार में मदद करेगी? अगर उर्जा के अपवय को ही रोक ले तो अधिक फायदा हो जाये क्योकि 1 यूनिट उर्जा की बचत यानि 1.2 यूनिट उर्जा का उत्पादन (ट्रांस्मिशन आदि व्यय को दृष्टिगत रखते हुये)।
बाते और भी हैं, जैसे सुरक्षा उपाय उस देश में जहाँ कोबाल्ट -6 जैसे रेडियोधर्मी देश का जाना माना विश्व्विधालय नही सभाल सका और कबाड़ मे बेच दिया! अभी 9 रिएक्टर है जब 60 होंगे तो लैंड- माइन लगे होंगे पूरे देश में। फिलहाल ये खरनाक खेल है, पहले रीढ़वाले देश बनें हम, वरना बहुत मुश्किल आने वाली है।
ReplyDeleteहमारी बात समाप्त ! अब सबकी सुनते हैं! आखिर लोकतंत्र है अपना!
ReplyDelete@ सम्वेदना के स्वर
ReplyDeleteआपने सही कहा, इस तथाकथित लोकतंत्र की खामियां भी हमें ही झेलनी है ...
आप इस चर्चा में गंभीरता से भाग ले रहे हैं, यह देख कर अच्छा लगा ...
अब आते हैं, आपके सवालों की तरफ ...
पहली बात तो यह है जब तक हम यह मान कर चलते रहेंगे कि परमाणु उर्जा अच्छी नहीं है तब तक हम उसकी अच्छाइयों को देखकर भी अनदेखा कर देंगे ...
स्कूटर की जगह मर्सिडीज या BMW खरीदना शायद बेवकूफी होगी, पर वो BMW क्या है ?
जहाँ इतनी गरीबी है वहां करोडो रुपये CWG के लिए खर्च हो जाते हैं, आपको क्या ये पैसे का सदुपयोग लगता है ?
हर दूसरे दिन किसी बहाने से सरकार का गिरना और फिर करोड़ों रुपये खर्च करके चुनाव करवाना, ये पैसे का सदुपयोग है ?
परमाणु उर्जा वो BMW नहीं है, वो आज देश की ज़रूरत है .... फालतू के खर्च दुसरे कई जगह हो रहे है, अगर उन्हें रोक पाए, तो देश का भला हो ...
यहाँ सवाल केवल ९ % का नहीं है, यहाँ सवाल है एक साफ़ सुथरा उर्जा स्रोत का, और विकल्प व्यवस्था का, और देश में मौजूद थोरियम के अपर भंडार को उपयोग करने का ...
ReplyDeleteकोयला, तेल, प्राकृतिक गैस एक दिन समाप्त हो जायेंगे, तब हम क्या करेंगे, आपको क्या लगता है कि उस वक्त अचनक हम सारे परमाणु कार्यक्रम शुरू कर देंगे और सब कुछ बहुत आसानी से और बहुत जल्दी जल्दी काम करने लग जायेगा ?
यदि हम अपने परमाणु उर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण को सफल देखना चाहते हैं, यानि कि थोरियम रिअक्टर को कार्यशील देखना चाहते हैं, तो ज़रूरी है आज हम जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा यूरेनियम रिअक्टर का इस्तमाल करें ... शायद आपने मेरे दिए हुए लिंक्स नहीं पढ़े हैं ...
मैं आपसे अनुरोध करुँगी कि आप एक बार उन लिंक्स में जाइये और उन बातों को समझने कि कोशिश करिये ...
जिसे आज आप पैसे कि बर्बादी समझ रहे हैं वो हमारे देश को सारी उर्जा समस्याओं से निजात दिला सकती है ...
ReplyDeleteऔर हाँ, शौपिंग माल में दुधिया रौशनी क्या केवल परमाणु उर्जा से ही आयेगी ? क्या आज भारत के बड़े शहरों में शौपिंग माल में दुधिया रौशनी नहीं फ़ैल रहे हैं? वो कहाँ से आ रही है ? क्या वो उर्जा कि बर्बादी नहीं है ?
तो केवल परमाणु उर्जा को ही दोष देना कहाँ तक उचित है ?
और जहाँ तक कोबाल्ट ६० जैसे घातक रेडियोधर्मी पदार्थ का सरे आम मिलने की बात है, तो एक सवाल मैं भी करती हूँ ... आज कितने साल हो गए हमारे देश में १४ परमाणु रिअक्टर बिजली उत्पादन में लगा हुआ है, आज तक कितने टन अपशिष्ट का उत्पादन हो चूका है ... आपने सुना है कभी ये रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर बाज़ार में मिले हैं ? इस तरह की लापरवाही विश्वविद्यालय में तो हो सकती है ... पर एक पॉवर स्टेशन में नहीं हो सकता है ...
http://www.domain-b.com/economy/infrastructure/power/20020902_nuclear_power.html
सार्थक पोस्ट के माध्यम से उभरती सुन्दर चर्चा।
ReplyDeleteवैकल्पिक उर्जा के श्रोत देखना तो अनिवार्य हो गया है जिससे दूसरों पर निर्भरता तेल की वजह से कम की जा सके !
ReplyDeleteपवन उर्जा, सौर उर्जा , चावल के हस से उर्जा, गोबर से उर्जा - ऐसे कितने ही माध्यम है जिनकी वजह से हजारों गावों को रोशनी से चमकाया जा सकता है ! उर्जा के ऊपर शोध में खर्चे की जरूरत इसलिए बढ़ जाती है क्यूंकि उर्जा एक मौलिक अधिकार है और उर्जा के बिना आज के मशीनी युग में कुछ संभव भी नहीं !
परमाणु उर्जा के लिए जैसा आपने कहा, जरूरी है कि मलबे का उचित रूप से निबटारा किया जा सके ! अमेरिका में परमाणु रिएक्टर पुराने होने कि वजह से प्रदूषण की ज्यादा समस्याए हैं परमाणु उर्जा के उपयोग से - जबकि फ्रांस् में ऐसा नहीं क्यूंकि उनके यहाँ मलबे के उचित निबटारे के लिए उपयुक्त साधन हैं - भारत को चाहिए की लेटेस्ट तकनीक का उपयोग कर परमाणु उर्जा की विसंगतियों को दूर करने के उपाय करे !
साथ में रोजमर्रा में सायकिल, सार्वजनिक ढाँचे के उपयोग को बढ़ावा देकर उर्जा पर निर्भरत कम की जा सकती है पर सोचिये के अगर हर भारतीय पर कंप्यूटर हो तो कितनी उर्जा कि खपत होगी ? ये सब सोचकर भारत को उर्जा के वैकल्पिक साधन खोजने ही होंगे !
उर्जा किसी देश के विकास के ईंजन का ईंधन है। प्रति व्यक्ति औसत उर्जा खपत वहाँ के जीवन स्तर की सूचक होती है। इस दृष्टि से दुनियाँ के देशों मे भारत का स्थान काफ़ी नीचे है। देश एक भीषण उर्जा संकट से गुज़र रहा है। उर्जा की कमी देश के विकास को अवरुद्ध कर रही है। नाभिकीय या न्युक्लियर उर्जा आने वाले काफ़ी समय तक हमारी उर्जा की आवश्यकताओं की आपूर्ति कर सकती है। उर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता अति आवश्यक है। अन्यथा निर्यातक देश अपनी बात मनवाने के लिए कभी भी यूरेनियम की आपूर्ति बंद कर सकते हैं। यूरेनियम का विकल्प थोरियम हमारे यहाँ प्रचुर मात्रा में मौजूद है। लेकिन इसको उपयोग में लाने के लिए समन्धित ‘ Fast Breeder Reactor ‘ तकनीकी अभी हमारे यहाँ पूरी तरह विकसित नहीं हो पाई है। हमें अपने संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। उर्जा एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें दूसरों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। हमें अपनी तकनीकी और अपने संसाधनों का उपयोग कर आत्मनिर्भरता हासिल करना होगा। हमारी तकनीकी हमारी आवश्यकताओं और संसाधनों के अनुरुप होनी चाहिए।
ReplyDeleteपरमाणु उर्जा ? जब कि युरोप ओर अन्य देश इसे छोड रहे हे, ओर हम इसे अब अपनाने की सोच रहे हे? इन का कुडा करकट हम अपने देश मै ला रहे हे, ओर परमाणु उर्जा का कचरा इतना आसान नही टिकाने लगाना, अगर ऊर्जा की जरुरत हे तो बहुत से ओर भी ढंग हे हवा से, समुंदर लहरो से, सुरज से ओर यह सब चीजे हमारे देश मै मिलती हे, लेकिन हमे पकी पकाई चाहिये, परमाणु उर्जा के नुकसान भी देखे
ReplyDeleteराज भाटिया जी से पूरी तरह सहमत...
ReplyDeleteजबकि हमारे देश में इतनी नदियाँ हैं, समुद्र से घिरा है हमारा ये देश तो क्यूँ जल उर्जा पर ध्यान दिया जाए... हमारे इंजीनियरिंग के syllabus में एक subject भी था energy resources ..काफी सारा कुछ उस समय पढ़ा था, उतना अब याद भी नहीं लेकिन परमाणु उर्जा के अलावा भी और विकल्प हैं जो इतने हानिकारक नहीं...
वैसे आपकी ये चर्चा सच में सार्थक है..जबकि अधिकांश ब्लौगर एक दूसरे की टांग खीचने में लगे हैं या फिर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने में,,,...आपका प्रयास सराहनीय है...
ReplyDeleteदिया हुआ लिंक जरुर पढ़े .
ReplyDeleteये साफ हो जायेगा की हम अपना थोरियम का प्रयोग कैसे कर सकते है और आत्मनिर्भर हो सकते है .
फिर शायद आयातित युरेनियम का महत्व समझ में आजाये . सही वक्त अभी ही है . तेजी से हमारे ऊर्जा स्रोत ख़त्म हो रहे है और कोयले का भंडार तो एक दिन ख़त्म होना ही है फिर तेजी से बढती
ऊर्जा की मांग इस को जल्द ही ख़त्म करेगी .अगर हम अभी सार्थक प्रयास करेंगे तो आगे हम अपने थोरियम का पूर्ण छमता से प्रयोग करना भी खोज निकलेगे . तब न हम सिर्फ अपनी अपितु दूसरो की भी जरुरत पूरी करने लायक होंगे .
सार्थक चर्चा।
ReplyDeleteकभी आपने पूछा था ’ब्लॉग पर क्या लिखना चाहिये?’
आज की चर्चा आपके उस सवाल का ही जवाब है।
सार्थक बात...
ReplyDelete@प्रवीण पाण्डेय , मो सम कौन, Udan Tashtari जी धन्यवाद !
ReplyDelete@राम त्यागीजी
ReplyDeleteआपके तर्कों का मै स्वागत करती हू ... पवन उर्जा, सौर उर्जा, इत्यादि उर्जा के अच्छे स्रोत हैं पर अभी इनमे बहुत शोध की जरुरत है, और ये काफी माहंगे उर्जा स्रोत हैं ... इन्हें व्यापक पैमाने पर इस्तमाल करना कठिन है ... आजतक जहाँ भी ऐसे उर्जा स्रोत को औद्योगिक रूप में इस्तमाल करने की कोशिश की गई है ... असफलता ही हाथ आई है ! ऐसे उर्जा स्त्रोत हमारी विशाल आबादी के लिए कम है ....
@@राम त्यागीजी
ReplyDeleteहा अगर परमाणु उर्जा के साथ ये विकल्प भी अपनाये जाये तो गाँवमे रोज़गार के साथ विकास में भी वृधि होगी !
परमाणु उर्जा के अवशिष्ट के बारे में आपका कहना ठीक है पर अब तक हम भारत में १४ रेअक्टोर चलते आ रहे है और सफलता से अवशिष्ट का ख्याल रखा जा रहा है जिसकी वजहसे आज तक कोई दुर्घटना नहीं घटी है ! परमाणु अपशिष्ट का निबटारा बहुत ही उच्च तकनीक के इस्तमाल से किया जाता है न की ताप विद्युत् केंद्र जैसे जहाँ उससे निकलता धुआं, राख धुल सब हवा में तैरता रहता है और आस पास की आबादी को नुकसान पहुंचाते रहता है !
जहाँ तक उर्जा खपत कम करने की बात है, शायद आपको पता नहीं की भारत वैसे भी उर्जा खपत सूचि में बहुत नीचे है ! हमें ऐसा लगता है की हम उर्जा की बर्बादी करते हैं, पर दरअसल यह सही नहीं है ....
हमारी जनसँख्या ही इतनी ज्यादा है कि हमारे उर्जा स्रोत इसके लिए काफी नहीं है !
@मनोज कुमारजी
ReplyDeleteधन्यवाद ! आपका कहना एकदम सही है कि उर्जा देश के विकास के ईंजन का ईंधन है ! आज ६० सालो बाद भी हम इस बात को समझ नहीं पा रहे है ! क्या वजह है की उर्जा खपत में इतना नीचे होते हुए भी हम उर्जा संकट से गुज़र रहे हैं ? इसका कारण हमारी जनसँख्या है । हमें अपनी जनसँख्या पर नियंत्रण करना आज तक नहीं आया ।
खैर ये विषय कुछ अलग है, इसके बारे में हम कभी और चर्चा कर सकते हैं । देश एक भीषण उर्जा संकट से गुज़र रहा है पर गलत सोच कि वजहसे हम सही रास्ता नहीं अपना रहे है ! अगर आज तक हमने हमारे थोरियम भंडार को उपयोग करने के बारे में सोचा होता तो शायद ये संकट कुछ हद तक कम हो सकता था !
@मनोज कुमारजी
ReplyDeleteभारत आज भी कोयला और तेल आयात करता है । यदि इनका निर्यात बंद कर दिया जाय तो हमारे देश के लिए संकट उत्पन्न हो सकता है ।
एक बात समझने की कोशिश कीजिये .... हमारे पास पर्याप्त थोरियम भंडार है । इतना है की कई सदियों तक हमारे सारे उर्जा संकट दूर हो सकते हैं । पर उस थोरियम उर्जा को उपयोग करने के लिए आज हमें युरेनियम रिअक्टर को बढ़ावा देना होगा । इसकी वजह क्या है इस बात को आप मेरे दिए हुए लिंक में जाकर देख सकते हैं । अगर आज हम युरेनियम आयात करने से और परमाणु उर्जा के विकास से पीछे हट जाते हैं तो यह एक गलत कदम होगा ।
@ राज भाटिया जी,
ReplyDeleteबड़े दुःख के साथ कहना पढ़ रहा है कि आपकी टिपण्णी से मैं व्यथित हुई हूँ ! इसलिए नहीं कि आप मुझसे असहमत हैं, बल्कि इसलिए कि आपने बिना जाने, बिना सोचे समझे, केवल एक पूर्वाग्रह के तहत ये असहमति जताई है ....
१. सबसे पहली बात तो यह है कि शायद आप तात्कालिक विषयों से बिलकुल अनभिज्ञ हैं और एकदम गलत सुचना प्रदान कर रहे हैं ज़रा खबरों को खंगाल कर देखिये ... आज एक New Nuclear Renaissance युग की स्थापना हो रही है, केवल भारत ही नहीं दुनिया के ज्यादातर देश नाभिकीय उर्जा की तरफ रुख कर चुके हैं ... आपको अवगत करा दूँ कि चाइना एक विशाल परमाणु उर्जा कार्यक्रम लेकर सामने आया है ....
अमेरिका जो पिछले चालीस साल से कोई परमाणु उर्जा संयंत्र बनाए कि अनुमति नहीं दिया था, वो भी आज नए संयंत्र बनाने की अनुमति दे चूका है ....
हर जगह युरेनियम प्राप्त करने के लिए होड़ मची हुई है ... युरेनियम के दाम २००३ में उसद १० था आज उसद ५० है ...
@ राज भाटिया जी,
ReplyDelete२. आपसे ये किसने कह दिया कि परमाणु तकनीक कूड़ा करकट है .... आपकी इस बात से मै असहमत हू... इसे कूड़ा करकट न कहके अवशिष्ट कहा जा सकता है जो कि हर खान से या कहिये हर जगहसे निकलता है.....
क्या आप जानते है - परमाणु तकनीक क्या है, किसे कहते हैं ? रिअक्टर क्या है, युरेनियम और थोरियम रिअक्टर में क्या फर्क है ? क्यूँ हमें आज युरेनियम की ज़रोरत है और हम क्यूँ आज ही थोरियम रिअक्टर इस्तमाल करना शुरू नहीं कर रहे हैं ?
३. आपकी टिपण्णी से साफ़ ज़ाहिर होता है कि आपने न तो पोस्ट पढ़ा है, न लिक पे जाकर कुछ देखा है न ही टिपण्णी-प्रति टिप्पणियों को पढ़ा है ... ये भी साफ़ ज़ाहिर है कि आपको तर्कों या ज्ञान से कोई लेना देना नहीं है ... बस जो आपको पता न हो उसे आप कूड़ा करकट समझते हैं
@ राज भाटिया जी,.....
ReplyDelete४. मैंने तो कही नहीं लिखा कि परमाणु उर्जा के अपशिष्ट को ठिकाने लगाना आसान है ... ! पर ऐसी तकनीक हमारे पास है जिससे यह किया जा सके ...
आप ज़रा ताप विद्युत् केन्द्रों कि तरफ ध्यान दीजिये... उन हजारों लोगों कि तरफ ध्यान दीजिये जो लोग उसके अपशिष्ट (धुआं, राख, acid rain इत्यादि) से पीड़ित हैं ...
५. आपने सही कहा हम भारतीयों को पकी पकाई खाने कि आदत है इसलिए हम कोई नयी बात सोचना नहीं चाहते हैं .... बस हमें आसानी से विद्युत् मिलता रहे ... पर्यावरण गया तेल लेने ... हम तो भाई धुआं उड़ाते रहेंगे ...पर्यावरण को दूषित करते रहेंगे ... हमें तकलीफ नहीं हो रही है .... भले ही आने वाले पीढ़ियों को तकलीफ क्यू न झेलना पड़े ?
६. आप कृपया विभिन्न उर्जा स्रोतों में जो तुलनात्मक शोध किया गया है उसके बारे में जानकारी हासिल करे ?
ReplyDelete७. मेरा आपसे अनुरोध है आप मेरा पिछला पोस्ट और उसकी तिप्पनियोको जरुर पढ़े और फिर अगर मै कही गलत हू तो आप मुझे बताइए, आप जैसे अनुभवी लोगो के विचारोसे मेरे भी सोच कि दिशा बदल सकती है !
@शेखर सुमन जी,
ReplyDeleteआपको हक है कि आप मुझसे या किसी और से सहमत या असहमत हो सकते हैं ...
पर अपनी सहमती जताने से पहले क्या आपने पोस्ट को और उसमें आये टिप्पणियों और प्रति-टिप्पणियों को ध्यान से पढ़ा है ? मुझे नहीं लगता है !
वरना आप एक ऐसे टिपण्णी से अपनी सहमती नहीं जताते जिसमें कोई भी तर्क नहीं दिया गया है, जिसमे केवल अतार्किक भड़ास निकाली गयी है !
आपसे अनुरोध है कि पोस्ट को संपूर्ण रूप से पढ़ें, दिए गए लिंक को पढ़ें, टिपण्णी-प्रति टिप्पणियों को पढ़ें और फिर खुद विचार मंथन करें !
फिर यदि आप मुझसे असहमत भी हो मुझे कोई गम नहीं! आपके विचारोंका स्वागत रहेगा पर अतार्किक रूप से सहमती या असहमति जाताना शायद उचित नहीं है !
@abhishek1502
ReplyDeleteचर्चा में सम्मेलित होने के लिए धन्यवाद !
अच्छा किया जो इस सार्थक चर्चा को आयोजित किया.....
ReplyDeleteकुछ सवाल मन आये थे पिछली पोस्ट पढ़कर उनके उत्तर मिले....
आभार
सच मुच सार्थक चर्चा
ReplyDeleteमिसफ़िट:सीधी बात
बढिया आलेख .. बुकमार्क कर लिया है .. फुर्सत में दोनो अंक पढूंगी !!
ReplyDelete@संगीता पुरीजी
ReplyDeleteआपका धन्यवाद ...आपको जब समय मिलेगा जरुर पढ़िए
मैंने सुना है फरीदकोट , पंजाब के आस पास के इलाके मैं यूरानियम बहुत है. और झारखण्ड से तो यह मिलता ही है. क्या बाहर से मांगने की जगह इसके भारत मैं और भी सोर्से की तलाश ज़रूरी नहीं?
ReplyDeleteपरमाणु ऊर्जा पर बहुत जानकारीपरक सामयिक पोस्ट !
ReplyDelete@एस.एम.मासूम
ReplyDeleteआपका टिप्पणीके लिए धन्यवाद ,
फरीदकोट , पंजाब के आस पास के इलाके में यूरेनियम नहीं है । जो भी है वो ताप विद्युत केंद्र के waste (fly ash) से पर्यावरण तथा नवजात शिशुओ में विकलांगता ला रहा है । अगर वहाँ कोई परमाणु उर्जा संयंत्र होता, तो ऐसा नहीं होता ।
आपने सही कहा । झारखण्ड में यूरेनियम खान है । वैसे उसके अलावा भी, मेघालय, आंध्र प्रदेश, कर्णाटक आदि राज्य में यूरेनियम के डिपोजिट है । पर अभी यहाँ उत्खनन में कई प्रॉब्लम है । इसके ग्रेड उतने अच्छे नहीं है जितने कि कनाडा इत्यादि देश में है । पिछले ५० साल से निरंतर खोज जारी है । पर जहाँ भी अनुसन्धान सरकारी मर्यादा में होता है वहाँ देर क्यूँ लगती है ये आप अच्छे से समझ सकते है ।
@ अरविन्द मिश्र जी
ReplyDeleteधन्यवाद आपकी टिप्पणी के लिए
ऊर्जा .. बिजली पानी क़ि समस्या जरूर सुलाझ्नी चाहिए ... प्रयास पूरे होने चाहियें ... सही तरीके से होने चाहिए ... सुरक्षा का ख्याल कर के होने चाहियें ....
ReplyDeleteपरमाणु ऊर्जा है तो दुधारी तलवार सावधानी से सही इस्तेमाल किया जाये तो स्वच्छ ऊर्जा अधिक मात्रा में उपल्ब्ध होगी । आपने जो बताया कि थोरियम के उपयोग से पहले हमें यूरेनियम और प्लुटेनियम वाले रियेक्टर लगाने होंगे इस विषय पर और जानने के लिये आप द्वारा दिये गये लिंक पर जाउंगी ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति परमाणु उर्जा के बारे मे. उर्जा के कुछ विकल्प तो निकालने ही चाहिए, वरना कुछ ही सालों मे हमे आज के जितनी भी बिजली मिलाना मुश्किल हो जायेगा.
ReplyDeleteज्ञानवर्धक,सार्थक चर्चा.
ReplyDeleteदीवाली की हार्दिक शुभकामनायें
आप को सपरिवार दिवाली की शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteतृप्तिजी,
ReplyDeleteनाभिकीय उर्जा पर आपके दोनों पोस्ट और टिप्पणियाँ भी पढा।
यह तो बडा गहरा विषय है। उर्जा पर मैं विशेषज्ञ नहीं हूँ।
इतना ही कहना चाहता हूँ कि हमें किसी भी उर्जा स्त्रोत को अस्वीकार नहीं करना चाहिए।
नाभिकीय उर्जा में केवल दो समस्याएं दिख रही हैं मुझे।
एक तो nuclear waste का safe disposal और दूसरा prohibitive cost per mega watt.
कोयला और जल स्रोतों से भी समस्याएं खडी होती हैं।
एक बात पर आपने जोर नहीं दिया और वह है कि नाभिकीय उर्जा देश में कहीं भी पैदा की जा सकती है। नदियों के समीप ही नहीं , कोयले के खानों के पास ही नहीं।
जमीन की आवश्यकता भी नयूनतम है। कोयला और जलस्त्रोतों से उर्जा पैदा करने में environmental costs भी यदि हम जोड दें तो नाभिकीय उर्जा उतना महंगा नहीं लगेगा।
हमारे प्रधान मंत्रीजी श्री मनमोहन सिंहजी का मैं बहुत आदर करता हूँ।
वे नाभिकीय उर्जा के समर्थक हैं और उन्होंने जी जान कोशिश की है इस दिशा में।
यदि वे इस प्रश्न पर आश्वासित हैं तो मुझे किसी और को सुनने की आवश्यकता नहीं।
आप के साथ हूँ इस प्रश्न पर। जब हम इसे अपनाना शुरू कर देंगे, अपने आप समस्याएं भी सुलझेंगी। तकनीक का विकास होगा। खतरे कम होंगे। यदि हम डर के मारे इसे अवसर ही नहीं देंगे तो क्षति अगली पीढियों को होगी। हमारी पीढी के लिए कोयला और तेल का भंडार पर्याप्त है पर अगली पीढियों का क्या होगा?
----continued----
हाँ एक आखरी बात। (चाहे इसे आप छोटा मुँह बडी बात समझें)
ReplyDeleteराज भाटिया जी और शेखर सुमनजी को अपनी बात कहने दीजिए।
उन्होंने आपके विरुद्ध कुछ नहीं कहा। केवल आपकी राय से असहमति प्रकट की।
राजजी के शब्द "कूडा कर्कट" किसी वस्तू पर टिप्पणी थी, व्यक्तिगत नहीं।
हाँ यह सच है कि बिना तर्क पेश किए उन्होंने राय दी पर यह तो टिप्प्णी में शायद एक कमी थी, कोई अपराध नहीं। हर किसी के पास समय नहीं होता तर्क के साथ लंभी टिप्पणी लिखने के लिए। आप या तो उनकी टिप्पणी को नजरन्दाज़ कर सकती थीं या उन्हें तर्क पेश करने के लिए कह सकती थी। आपकी प्रतिटिप्प्णी पढकर हमें दुख हुआ।
जरा आपके इन वाक्यों पर ध्यान दीजिए
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.... आपने बिना जाने, बिना सोचे समझे, केवल एक पूर्वाग्रह के तहत ये असहमति जताई है ....
१. सबसे पहली बात तो यह है कि शायद आप तात्कालिक विषयों से बिलकुल अनभिज्ञ हैं और एकदम गलत सुचना प्रदान कर रहे हैं
क्या आप जानते है - परमाणु तकनीक क्या है, किसे कहते हैं ? रिअक्टर क्या है, युरेनियम और थोरियम रिअक्टर में क्या फर्क है ?
आपकी टिपण्णी से साफ़ ज़ाहिर होता है कि आपने न तो पोस्ट पढ़ा है, न लिक पे जाकर कुछ देखा है न ही टिपण्णी-प्रति टिप्पणियों को पढ़ा है ... ये भी साफ़ ज़ाहिर है कि आपको तर्कों या ज्ञान से कोई लेना देना नहीं है ..
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पर अपनी सहमती जताने से पहले क्या आपने पोस्ट को और उसमें आये टिप्पणियों और प्रति-टिप्पणियों को ध्यान से पढ़ा है ? मुझे नहीं लगता है !
वरना आप एक ऐसे टिपण्णी से अपनी सहमती नहीं जताते जिसमें कोई भी तर्क नहीं दिया गया है, जिसमे केवल अतार्किक भड़ास निकाली गयी है !
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आज पहली बार आया था आपके ब्लॉग पर और एक गंभीर विषय पर सार्थक चर्चा देखकर प्रसन्न हुआ था। कुछ अन्य ब्लॉग साइटों पर ब्लॉग्गर और टिप्प्णीकार के बीच तू तू मैं मैं देखर हम दुखी हुए थे। मैं नहीं चाहता कि यहाँ भी मुझे यह अनुभव करना पडे।
ReplyDeleteअच्छा हुआ कि राज भाटियाजी और शेखर सुमन जी ने बात आगे नहीं बढाई। नहीं तो मुझे यहाँ भी वही नज़र आता जिससे बचने के लिए मैं नये और अच्छे ब्लॉगों की हमेंशा तलाश में रहता हूँ। बडी उम्मीद लेकार आया हूँ यहाँ और आशा है कि भविष्य में मुझे निराश नहीं होना पडेगा।
हम इमानदार टिप्प्णी करना पसन्द करते हैं। झूठी वाह वाही और अनावश्यक डांट का हम समर्थन नहीं करते। आप एक ज्ञानी विशेषज्ञ हैं और मुझे पूरी उम्मीद है कि यहाँ बार बार पधारकर मैं अपना ज्ञान बढा सकूंगा। हम आते रहेंगे।
कृपया इस टिप्प्णी को अन्यथा न लें। यदि आपको इस टिप्प्णी पढकर दुख होता है तो मुझे क्षमा कीजिए। भविष्य में हम आपके लेख की प्रशंसा करेंगे (यदि पसन्द आया तो) या कुछ नहीं कहेंगे।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
इस टिप्प्णी को हम आपको private email द्वारी भेजना चाहते थे।
पर आपके प्रोफ़ाइल में आपका पता नहीं मिला।
विवश होकर यहाँ सार्वजनिक प्लैटफ़ोर्म पर भेज रहा हूँ।
आप चाहें तो इसे मिटा सकती हैं। मैं बुरा नहीं मानूंगा।
विश्वनाथ जी,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी पढकर बहुत अच्छा लगा ...
इसलिए कि आपने इस चर्चा को गंभीरता से लिया ...
शायद आप ठीक कहते हैं कि प्रतिउत्तर मुझे संभलकर देना चाहिए था ... आगे से इस बात का ध्यान रखूंगी ...
पर मेरा मानना है कि यदि आप किसीसे सहमति जता रहे हैं तो कोई बात नहीं, पर यदि असहमति है तो उसके पीछे गंभीर तर्क होने चाहिए न कि कोई पूर्वाग्रह ...
चर्चा तभी सार्थक होती है जब दोनों पक्ष अपने तर्क रखें ... इस मामले में मुझे "संवेदना के स्वर" की बातें बहुत अच्छी लगी ...
भले ही वो परमाणु उर्जा के विरूद्ध बोले पर केवल आँख बंद करके असहमति न जता कर उन्होंने अपने तर्क रखे ... अब उनका तर्क सही है या गलत इस पर विचार किया जा सकता है, मैंने किया भी है ...
आपके सुझाव मुझे पसंद आये ... आपकी टिप्पणी को अन्यथा लेने का प्रश्न ही नहीं आता ... डिलीट करने का तो कतई नहीं ...
भविष्य में भी आपकी टिप्पणियों का स्वागत रहेगा ...
मैं भी चाहती हूँ कि जो मेरे ब्लॉग पर आये वो मेरी पोस्ट को गंभीरता से पढ़े और उस बारे में सोचे ....
और हाँ यदि पोस्ट पसंद न हो तो बिलकुल कह सकते हैं कि क्यूँ पसंद नहीं आई ...
गंभीर टिप्पणियां मेरे लिए उत्साहवर्धक हैं ... भले ही उसमे असहमति जताई गई हो ...
यह टिप्पणी बहुत देर से ! आज ही इस लेख पर नजर पढी :
ReplyDeleteपरमाणु ऊर्जा आज हमारी जरूरत है ! लेकिन यह सुरक्षित नहीं है, विकिरण के अलावा चेर्नोबिल जैसी दुर्घटना के अंदेशे रहते है| हमें जरूरत है संलयन रिएक्टरो की जो कि विकिरण रहित और सुरक्षित रहेंगे ! लेकिन यह तकनीक अभी तक विकसित नहीं हो पायी है, अभी भी इस पर कार्य चल रहा है| आवश्यकता आविष्कार की जननी है जिस दिन यह तकनीक बन जायेगी, ऊर्जा के सभी अन्य श्रोत भूतकाल की बात हो जायेंगे, लेकिन कब ? शायद निकट भविष्य में !
आशीष
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परग्रही जीवन