मैं कोई कवयत्री नहीं हूँ ... बस कुछ मन में ख्याल आ जाता है तो उसे शब्दों में ढालने की कोशिश करती हूँ ... एक छोटी सी कोशिश आपके सामने हाज़िर है ... ... मैं कोई
आज मैं इस मुकाम पर हूँ (मेरे पास भूगर्भशास्त्र में डाक्टरेट है, विदेश में एक विदेशी कंपनी में काम कर रही हूँ) । क्या मैं इस मुकाम तक यूँ ही आ गई हूँ ? क्या इसमें मेरी कोई मेहनत नहीं है ?
अच्छी लगी आपकी ये सोच .....!! शायद आपके नाम के साथ इन्द्रनिल देख किसी ने कह दिया हो ......
रिश्तों की नज़्म अच्छी है .....बस कुछ और मेहनत चाहती है ...... !!
आज मैं इस मुकाम पर हूँ (मेरे पास भूगर्भशास्त्र में डाक्टरेट है, विदेश में एक विदेशी कंपनी में काम कर रही हूँ) । क्या मैं इस मुकाम तक यूँ ही आ गई हूँ ? क्या इसमें मेरी कोई मेहनत नहीं है ?
ReplyDeleteअच्छी लगी आपकी ये सोच .....!!
शायद आपके नाम के साथ इन्द्रनिल देख किसी ने कह दिया हो ......
रिश्तों की नज़्म अच्छी है .....बस कुछ और मेहनत चाहती है ...... !!
pahli do panktiyaan hi man le gayi..sundar prayas! keep it up :)
ReplyDeleteDHANYAWAAD CORAL JI BLOG PAR ANE AUR AUR MERA HOSLA BADHANE KE LIYE
ReplyDeleteUMEED HAI AGE BHI MERA HOSLA BADHAYEGE..
रिश्ते को उकेरती सुन्दर रचना
ReplyDeleteऔर फिर बैकग्राउंड भी उतना ही शानदार
your poem is full of feelings. Thanks for visiting my blog.
ReplyDeletekya hoob likha aapne...badhai ho
ReplyDeleteरिश्ता अच्छा है, पर उसमें भाषा की अशुद्धियां रह गई हैं। वे रिश्ते को कमजोर कर रही हैं। होना चाहिए लफ्जों,उलझनें,मैं,नींव।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है !!!!! वाह
ReplyDeletemam, aap to poet b hai!!
ReplyDeletebehtareen kavita...
ReplyDeletesundar kavita..!
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