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Sunday, July 18, 2010

भूख .....


कल मेरे साथ एक अजीब सा हादसा हुआ जो मेरे मन को झकझोर कर रख दिया !
रविवार का दिन था, सुबह ११ बजे, मैं अपने पति इन्द्रनील के साथ बाज़ार से कुछ घरेलु सामान लेने बाहर गई थी । यहाँ मैं अकसर जाती हूँ, ज्यादातर अकेले ।
सारा सामान खरीद लिया और साथ ही बाहर से ही खाना खरीद लिया । भारी सामान मैंने इन्द्रनील के हवाले कर दिया और खाने का पाकेट मैंने संभाल लिया । रास्ते में रविवार कि वजह से भीड़ ज़रा कम ही थी ।
हम दोनों भी अपनी बातों में खोये आगे बढ़ रहे थे, कि तभी वहां कुछ लड़कों की एक टोली पहुंची । कपड़ो और शक्ल सूरत से ही वो लोग गरीबों की बस्ती से है ये पता चल रहा था । हम भी थोडा रास्ते के साइड में हट गए ताकि उन्हें अवोइड कर सकें ।
उनमे से एक लड़का पैसे मांगने लगा । जैसे हम करते है, हम उसे टाल कर आगे बढ़ गए । तभी आगे से उन्ही के और साथी हमारे पास आ गये और जबरजस्ती से पैसा और खाना मांगने लगे । हम भी रास्ता बचाके चलने लगे । तभी मेरे पिछे से एक ८ - ९ साल का लड़का जो कि उन्ही का साथी था, अचानक आया और मेरे हाथ से खाने के पाकिट पे झपटा । मैं सजग थी और मैंने झट से उसका हाथ पकड़ लिया । तभी आसपास के कुछ लोग भी चिल्लाये । वो लड़के तुरंत वहां से भागे । हम भी आगे बढ़ गए, पर ना जाने क्यूँ, बहोत बुरा लग रहा था !
बातों बातों मै मैंने इन्द्रनील को बोला वो लड़के मेरा हैण्ड बैग भी छिन सकते थे पर उन्होंने वो नहीं किया वो लोग सिर्फ खाना चाहते थे ........... भूख उन्हें जुर्म करने पर मजबूर कर रही थी । हम बहोत आगे बढ़ आये पर ना जाने मन अच्छा नहीं लग रहा था । तभी इन्द्रनील ने वो खाने का पाकेट मेरे हाथ से लिया और मुझे वही रुकने के लिए बोल कर पलट गए ... उन्हें वापस जाता देखकर मै थोडा डर ही गई और मैं उनके पीछे जाने लगी । मैं काफी दूर थी तब मैंने देखा नील वो खाना उनके हवाले कर रहे थे और वो लोग पीछे हट रहे थे । वो लोग मना कर रहे थे पर इन्द्रनील ज़बरदस्ती उनके हाथो में खाना देकर फिर लौट आये । वो खुश लग रहे थे, मैं अभी भी थोडा डरी हुई थी ।
हम दोनों फिर घर लौट आये । आने के कितने देर तक हम दोनों में यही चर्चा चलती रही, कि भूख इंसान को कितना लाचार कर देती है !

चित्र गूगल सर्च से साभार लिया गया है

7 comments:

  1. संवेदना से पूर्ण घटना पढ़वायी आपने। पेट की भूख का समाधान ही जीने की शर्त है।
    देश अगर ऐसा प्रयोजन कर दे कि ऐसे बच्चे और किशोर कम से कम खाना खा सकें और पढ़ सकें तो देश की कायापलट हो जाये।

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  2. तृप्ति जी आपने एक अनुभव को इतने मार्मिक और
    ईमानदार तरीके प्रस्‍तुत किया है सारी बात स्‍पष्‍ट हो जाती है। वे तो खैर मानव हैं। भूख उन्‍हें सताती ही होगी। अगर हम यह संवदेना महसूस कर सकें तो शायद दुनिया की तमाम समस्‍याएं समाप्‍त हो जाएं।
    ब्‍लाग जगत में आपका इस तरह प्रवेश स्‍वागत योग्‍य है।

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  3. .
    इन्द्रनील जी का निर्णय सराहनीय एवं अनुकर्णीय है।

    इस सुन्दर पोस्ट के लिए आपका ह्रदय से आभार।
    .

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  4. हे भगवान्!
    उस रात का इंतजाम तो हो गया मगर ज़िंदगी बहुत लम्बी है ... और आंतें भी...

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  5. इन्द्रनील जी के ब्लॉग के रास्ते आपके ब्लॉग(ये भी तो इन्द्रनील जी का ही ब्लॉग है वैसे) तक पहुंचे। खूबसूर पोस्ट और यह कहूंगा कि प्रबुद्ध इंसानों की जोड़ी है आपकी।
    बधाई।
    और कृपया ये वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें, सुविधाजनक रहेगा।
    आभार।

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  6. इन्द्रनील जी के ब्लॉग के रास्ते आपके ब्लॉग(ये भी तो इन्द्रनील जी का ही ब्लॉग है वैसे) तक पहुंचे। खूबसूर पोस्ट और यह कहूंगा कि प्रबुद्ध इंसानों की जोड़ी है आपकी।
    बधाई।
    और कृपया ये वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें, सुविधाजनक रहेगा।
    आभार।

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  7. विचारोतेज्क रचना!पर शायद और कुछ समय है,एक और बुद्धा को निर्वाण प्राप्त करना पडेगा ये खोज पाने के लिये, कि मानवीय पीणा का अन्त क्या मानव के पास ही है? या ईश्ववर हर बार आयेगा कष्टो से बचाने के लिये!आभर!

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टिप्पणी के लिए आपका बहुत धन्यवाद. आपके विचारों का स्वागत है ...

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