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Thursday, May 5, 2011

मोहसिन रिक्शावाला

हर तरफ गर्मी की छुट्टियों की तैयारियाँ चल रही है । मुझे भी अपनी बचपन के वो दिन याद आ गए जब मैं स्कूल जाती थी । वो नई नई किताबें, वो किताबों की खुशबु । वो नए नए कपड़े । और इन सब बातों में मुझे हमारा रिक्शा वाला याद आया जो हमें रोज स्कूल ले जाता था । जब हम प्रायमरी स्कूल में जाते थे तब की बात है, रामभैया नामक रिक्शावाला हमें ले जाता था । पर वो अपने बुढ़ापे के कारण और काम नहीं करना चाहता था । तब वो अपने साथ एक २०/२२ साल का दुबला पतला लड़का घर में ले आया था । वो मुसलमान था और उसका नाम था मोहसिन खान । और माँ के साथ हमारे सब दोस्तों के घर से उसे हा मिली. दूसरे दिन से सुबह सुबह मोहसिन भाई आजवाज लगते टी जल्दी चलो, पड़ोसमे विद्या रहती थी तो वि बहार आओ वो कभी भी पुरे नाम से नहीं बुलाया पूरी ये, बी, सि, डी गिनवाते थेहम लोग रिक्शे में बैठके हसते रहते थे और उसके आवाज़ के साथ हर घर के सामने एको देते रहते थे .... और फिर हमने भी उसका नाम रखा मो-भाई
हर शुक्रवार को हम सब बच्चो को वो चोकोलेते खिलाते थे उस उम्रमे समजता था नहीं था, तब हम पूछते थे आज ये चोकोलेते क्यू? तो हस देते थे .... बड़े बच्चो से कुछ मुसलमानों के बारे में पता चला तो.. हम शुक्रवार को चिढाते थे मो-भाई आज नहाये है इसलिए चोकोलेते देंगे वो कभी नाराज़ नहीं हुये बस हसी में साथ देता थे लेकिन उसका वो शुक्रवार चोकोलेते देना बंद नहीं हुआ
आज अचानक याद आया तो बहन को फोन करके पूछा तो बोली बहुत साल हो गए मो-भाई नहीं दिखे है शायद अब वो कोई और काम करते है........ क्यू? क्या बात हुयी होंगी तब बहन बोली अब लोग अपने बच्चे को शायद उसके साथ भेजना पसंद नहीं करते है. सच में दुःख हुआ कितना सादा थे वोना जादा बात करना, कितना सताते हम उन्हें पर वो हसते रहते थे। मै दो साल उनके रिक्शा में गयी कभी कोई शिकायत नहीं आई बाद में हम स्कूल में बायसिकल से जाते रहे फिर भी मो-भाई का कॉलोनी छोटे बच्चो लेजाना रोज का था मुझे याद नहीं उनके बारे में कोई शिकायत किसिस ने की
जब रामभाई उनको साथ लाए तो ना हमारी माँ ने, या दोस्तों की माँ ने... ना कहा था। आज लगता है वो दिन अलग थे तब हम हिन्दुस्तानी थे...... ना की हिंदू...... ना मुस्लिम ...आज ना जाने वो भरोसा कहा चला गया है आज हम हिंदू- मुसलमान में बट गए है ..आज आदमीसे पहले हम उसका नाम देखते है जात देखते है.....कहने को एक देश में है पर दिल टूट गए है।


चित्र गूगूल सर्च से साभार

20 comments:

  1. "कहने को एक देश में है पर दिल टूट गए है।"
    ये पंक्तियाँ एक कड़वा यथार्थ प्रस्तुत करती हैं.

    सादर

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  2. सच कहा आपने, दूरियाँ इतनी बढ़ गयी हैं कि कुछ भी बात करने के पहले नाम पूछते हैं लोग।

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  3. कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा,
    वक्त के साथ हर सोच बदल जाती है...


    -बस, वक्त के साथ ही सब बदला है...

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  4. बिल्‍कुल सही ... ।

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  5. शायद हम बड़े हो गए हैं (और दिल छोटे)...

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  6. बिल्‍कुल सही| वक्त के साथ ही सब बदला है|

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  7. सच में .....बहुत सटीक और संवेदनशील कथ्य

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  8. सच में इंसान धर्मों के नाम पर बंट गया है..बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..

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  9. आपकी शानदार दिल को छूती प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
    विश्वास कीजियेगा,अच्छा समय भी जरूर आएगा एक दिन.

    मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत शुक्रिया.एक बार फिर से आयें ,नई पोस्ट जारी की है.

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  10. बहुत ही सरल प्रसंग में आप ने बहुत बड़ी बात कह दी है.
    उम्मीद रखिये.दिन फिर से अच्छे आयेंगे.बस हम विशवास को बनाए रखें.

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  11. आज भी फ़र्क नही, लेकिन यह नेता अपने वोट के लालच मे ही हमे भडकाते हे, लेकिन आज भी ८०% लोग ऎसे ही हे बस २०% नासमझ लोग भडक जाते हे, मेरे दोस्तो मे मुस्लिम भी बहुत हे, जिन्हे मै कभी गेर नही समझता, ओर कभी दिमाग मे आता ही नही कि यह दुसरे धर्म से हे

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  12. बहुत खूब, शुभकामनायें आपको !!

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  13. insan ka insan bane rahana aasan nahin hai . aaj ham paribhashit hone lage hain fatvon se , niyamon se ,jinaka mithak sir chadhkar bol raha hai ...
    achha aalekh . shukriya ji

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  14. सुन्‍दर विचार... बहुत बहुत बधाई ।।।।

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  15. ज़माना बदल गया सब रिश्ते खो गये
    अपने थे जो अब हिन्दू-मुसलमाँ हो गये॥

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  16. ek desh kya apne ghar me hum badal gaye hain...

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  17. आज के इस इंसान को ये क्या हो गया है, दिल अपनी में ही खो गया है

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  18. yes agree with you you touch the bitter truth of India.

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टिप्पणी के लिए आपका बहुत धन्यवाद. आपके विचारों का स्वागत है ...

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