Pages

Sunday, April 3, 2011

कांच की बरनी और दो कप चाय

यह कथा मुझे मेरे दोस्त से मिली बहुत अच्छी लगी तो आप लोगो के साथ बाट रही हू...
जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा , "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले

हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे...

फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है ।

अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक- अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे..


अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

16 comments:

  1. शीर्षक से समझ पाया..काफी पहले ईमेल से मिली थी यह कथा...

    ReplyDelete
  2. पढ़ चुका हूँ पर पुनः पढ़कर अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  3. सच है इस कथा में ... अगर कोई समझ जाए तो जीवन सफल ....

    ReplyDelete
  4. It gives a beautiful lesson to everyone.

    नव-संवत्सर और विश्व-कप दोनो की हार्दिक बधाई .

    ReplyDelete
  5. मैंने भी पहले इसे पढ़ रखा है.कहानी बहुत ही अच्छा सन्देश देती है.

    सादर

    ReplyDelete
  6. बहुत ही प्रेरक कहानी...बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  7. कहानी बहुत ही अच्छा सन्देश देती है

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर कथा!
    --
    नवरात्र के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को प्रणाम करता हूँ!

    ReplyDelete
  9. सुंदर कहानी.... पहली बार ही पढ़ी ....विचारणीय बात लिए है....

    ReplyDelete
  10. मैंने भी पढ़ी थी लेकिन बहुत पहले शायद..... दोबारा पढना अच्छा लगा.... :)

    ReplyDelete
  11. कहानी बहुत ही अच्छा सन्देश देती है| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  12. प्रेरक कथा, प्राथमिकताये तो तय करनी ही पडेंगी।

    ReplyDelete
  13. बहुत अच्छा सन्देश.
    टेनिस की गेंदों और कंकडो में कभी कभी भेद करना मुश्किल हो जाता है.लेकिन भेद करना जरूरी है.

    ReplyDelete
  14. Sundar Vrittant hai....aur preranadayak bhi....

    ReplyDelete
  15. बहुत ही बढ़िया , सन्देश दिया है इस कथा के माध्यम से आपने कि पहले हमें अपने मूल कार्यों कि तरफ ध्यान देना चाहिए !

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिए आपका बहुत धन्यवाद. आपके विचारों का स्वागत है ...

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...