Aapki chinta bilkul sahi hay... mujhe bhi is prasan ka uttar chahiye..mujhe lagta hay ham sabhi ka yahi prashan hay..kab hoga is dunia ka sartaz hindustan.
छठ मेरी यादों में इस तरह से बसा हुआ पर्व है कि मेरे दोस्त कहते हैं कि तू बंगाली नहीं, पिछले जनम का बिहारी रहा होगा...! चाहे जो भी हो, इस त्यौहार का सबसे सशक्त पक्ष तो मुझे यह लगता है कि इसे मनाने वालों के मन में कंठ तक पानी में डूबकर सूर्य की उपासना करते समय किसी प्रकार की मलिनता जन्मा नहीं ले सकती है. छठ की असीम शुभकामनाएं...भगवान भास्कर का स्नेह सबका जीवन समृद्ध बनाए...!
Namskar, Hindustan ko sartaj banane ka sapna shayad sapna hi rahe.jis`desh me Moral Values ka paimana generation dar generation parivarit hota ja raha ho, wahan ki peedhiyan ki taqdeer mein gulam mansikta ki jhalak hi parilakshit hoti rahti hai.main shayad jyada cheekh raha hun, par sach ye hai ki ham sab napunsak hain aur sirf bolte hain...mauka milne par ham sabhi khud ko Suvarn kannchan sikkon se taulte hain...
Jab tak ham khud ko anushashit nahi kar lete, shayad Hindustan puchhalla desh hi rahe. yahi shayad hamari naiyati hai. Aapki kavita ki baat karun to kam shabdon me bahut bari baat kahi hai aapne. aap aashavadi hain, rahein aur rachna dharmita nibhati rahein.
bahoot hi sunder poem.... kash aisa hi hota
ReplyDeletevery nice post
ReplyDeleteखर पतवार की सफाई के बाद ही भारत महाशक्ति बन सकता है
सुन्दर भावना.
ReplyDelete@उपेन्द्रजी
ReplyDeleteधन्यवाद !
@अभिषेकजी
सच है बहुत बड़े सफाई अभियान कि जरुरत है :)
बिलकुल सही लिखा... यहाँ का का यही है चलन....
ReplyDeleteमहज आर्थिक और दिखावटी उन्नति से कुछ नहीं होगा;जब तक हम वैचारिक और मानसिक दृष्टि से खुद को उन्नत नहीं बनायेंगे.
सादर
सही आह्वान किया है!
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा धन्यवाद|
ReplyDeleteइसी स्वप्न में हम आँख खोले जी रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteबहुत जल्दी सरताज बनने वाले हैं हम। ओबामा तो बोल ही दिए हैं।
ReplyDeleteबहुत खूब.... बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteसटीक और सुंदर रचना
ReplyDeleteAapki chinta bilkul sahi hay...
ReplyDeletemujhe bhi is prasan ka uttar chahiye..mujhe lagta hay ham sabhi ka yahi prashan hay..kab hoga is dunia ka sartaz hindustan.
bahut sundar rachna
excellent
ReplyDeleteकविता के माध्यम से बड़ी वाजिब चिंता जताई है आपने.
ReplyDeleteआमीन ... आपकी मनोकामना जरूर पूरी हो .... भारत जरूर अपना नाम रोशन करेगा इस दुनिया में ...
ReplyDeleteदीपों का त्यौहार बहुत बहुत मुबारक हो ..
सच्चाई को बयान करती भावपूर्ण रचना !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
कब होगा इस दुनिया का
ReplyDeleteसरताज हिंदुस्तान...
आपकी चिंता हम सबकी चिंता है।
भगवान दोबारा यहाँ न उतारें...
ReplyDeleteछठ मेरी यादों में इस तरह से बसा हुआ पर्व है कि मेरे दोस्त कहते हैं कि तू बंगाली नहीं, पिछले जनम का बिहारी रहा होगा...! चाहे जो भी हो, इस त्यौहार का सबसे सशक्त पक्ष तो मुझे यह लगता है कि इसे मनाने वालों के मन में कंठ तक पानी में डूबकर सूर्य की उपासना करते समय किसी प्रकार की मलिनता जन्मा नहीं ले सकती है. छठ की असीम शुभकामनाएं...भगवान भास्कर का स्नेह सबका जीवन समृद्ध बनाए...!
ReplyDeleteमाना गलत है आज इस दुनिया का चलन
ReplyDeleteमगर चाहे हम तो बदल सकते है ये चलन
निराश होने से नही बदलते दुनिया के चलन
हमसे आपसे ही बढते है इस तरह के चलन
.
ReplyDeleteDear Coral,
Beautifully stated the bitter truth. I hope soon there will be a day when people will realize this fact and our nation will prosper.
.
इन्श'अल्लाह जल्द ही!
ReplyDeleteआशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
सुन्दर आह्वान .. सटीक रचना
ReplyDeleteअच्छा है।
ReplyDeleteयहाँ आने में देर हो गयी....
ReplyDeleteपता नहीं कैसे...
बहुत ही खुबसूरत कविता...
कब जागेगा िन्सान और हिन्दुस्तान । जायज चिंता है ।
ReplyDeleteआदरणीया तृप्ति जी "कोरल"
ReplyDeleteनमस्कार !
गहन गंभीर सोच की रचना के लिए आभार और बधाई ! वैसे मैं पलाश जी से सहमत हूं … निराशा में भी आशा जीवित रहनी आवश्यक है !
काफ़ी समय से आपने पोस्ट भी नहीं बदली , और मेरे ब्लॉग सहित अन्यत्र भी नहीं दिख रही हैं … आशा है, सपरिवार स्वस्थ-सानन्द हैं ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Namskar,
ReplyDeleteHindustan ko sartaj banane ka sapna shayad sapna hi rahe.jis`desh me Moral Values ka paimana generation dar generation parivarit hota ja raha ho, wahan ki peedhiyan ki taqdeer mein gulam mansikta ki jhalak hi parilakshit hoti rahti hai.main shayad jyada cheekh raha hun, par sach ye hai ki ham sab napunsak hain aur sirf bolte hain...mauka milne par ham sabhi khud ko Suvarn kannchan sikkon se taulte hain...
Jab tak ham khud ko anushashit nahi kar lete, shayad Hindustan puchhalla desh hi rahe.
yahi shayad hamari naiyati hai.
Aapki kavita ki baat karun to kam shabdon me bahut bari baat kahi hai aapne. aap aashavadi hain, rahein aur rachna dharmita nibhati rahein.
bahut Khub...ham bhi intezar kar rahe,hindutan ke sartaj hone ka.
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