उसदिन
अचानक
जिंदगी
आई सामने,
और
बोली -
“अब
तक तुम भाग रही थी
समय
के पीछे,
लो
आज से मैं देती हूँ
तुम्हे
समय,
जितना
चाहे ले लो,
करो
जो मन मर्ज़ी है |
बोलो
तुम क्या करोगी ? “
बस
निकल पड़ी मैं,
जुट
गई एक सूचि बनाने में,
करना
जो था बहुत कुछ,
सूचि
बनती गयी ...
कितना
कुछ ....
पर
ना
जाने क्यूँ,
एक
अजीब अहसास क्यूँ आने लगा,
याद
सताने
लगी
उस
व्यस्तता की
कुछ
खालीपन सा लगने लगा |
तब
समझी
मैं
कि
व्यस्तता थी,
इसलिए
हर
बात की अहमियत थी |
समय
की
अहमियत थी |
शायद
मैंने ही नहीं दिया था महत्व
समय
को ...
फिर
नए जोश के साथ ...
लौट
पड़ी मैं ...
अपनी
उसी व्यस्त दुनिया में
फिर
से
जिंदगी के पीछे |
चित्र साभार : इन्द्रनील
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