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Monday, June 25, 2012

फिर से जिंदगी

उसदिन अचानक
जिंदगी आई सामने,
और बोली -
“अब तक तुम भाग रही थी
समय के पीछे,
लो आज से मैं देती हूँ
तुम्हे समय,
जितना चाहे ले लो,
करो जो मन मर्ज़ी है |
बोलो तुम क्या करोगी ?
बस निकल पड़ी मैं,
जुट गई एक सूचि बनाने में,
करना जो था बहुत कुछ,
सूचि बनती गयी ...
कितना कुछ ....
पर  ना जाने क्यूँ,
एक अजीब अहसास क्यूँ आने लगा,
याद  सताने लगी
उस व्यस्तता की
कुछ खालीपन सा लगने लगा |
तब  समझी मैं
कि व्यस्तता थी,
इसलिए
हर बात की अहमियत थी |
समय  की अहमियत थी | 
शायद मैंने ही नहीं दिया था महत्व
समय को ...
फिर नए जोश के साथ ...
लौट पड़ी मैं ...
अपनी उसी व्यस्त दुनिया में 
फिर  से जिंदगी के पीछे |

चित्र  साभार : इन्द्रनील 
http://www.flickr.com/photos/61602174@N08
 




Wednesday, June 13, 2012

कभी कभी ना जाने क्यू ?

कभी कभी ना जाने
क्यूँ  ये होता है
बनती बातों को
बिगाड़ने में
समय क्यूँ साथ देता है
पहली बात से
शुरू  होके
हर बात बिगड़ जाती है
अंत होते होते
जैसे जान ही निकल जाती है ......








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