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Tuesday, October 9, 2012

सच्ची बात कही थी मैंने I




चित्र  साभार : इन्द्रनील - Flicker
                              Ignited Images on Facebook


सच क्या है? ये कितना आसान सवाल है पर जवाब देना उतना ही कठिन I हम कह सकते है की सच वो है, जो वास्तविकता  या हकीकत  को दर्शाता है I पर क्या ये सीधी सी बात सच है? क्या इस मे कमी नज़र नहीं आती ? वास्तविकता क्या है ? या हकीकत क्या है ? ये सब एक दृष्टी पर निर्भित नहीं होता है ?
एक छोटासा उदाहरण इस बात की पुष्टि करता है I ग्लास आधा भरा या आधा खाली? ये एक दृष्टी, वास्तविकता और सोच पर निर्भित होता है I तो इसमें सच क्या है ? क्या भरा ग्लास मुझे तब लग सकता है जब उसकी जरुरत हो ? खाली ग्लास इसलिए लगता है की उस वक्त मेरी जरुरत ना हो ?
इंसान सच को इसी नाप दंड मे तौलता है और फिर जो ताकतवर है , वो अपने अनुरूप इसे अपनी सच्चाई के रूप मे पलट देता है I फिर वास्तविकता भलेही अलग क्यू ना हो I
फिर सच क्या है ? 
सच यानी जो तथ्यों (factually) के आधार पर और यथोचित (logically) रूप से सही हो और जो भ्रमकारी ना हो I पर क्या इसे हमेशा समाज मे सच माना गया है ?

 इसी बात पर मेरी एक  पसंदीदा जगजीत सिंग द्वारा गायी हुयी गज़ल आप सबके लिए  
 

Wednesday, October 3, 2012

बातो बातो मे !



  चित्र चिन्मयी के ब्लॉग से 
गाँधी जयंती थी के मध्य कुछ दोस्तों से प्यारी बाते हो गयी I हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार होता है, पर किसी बात को अच्छी तरह से जाने बिना एक बहाव (फैशन) के चलते बातें बनाना गलत है I

हमारा देश “गाँधी का देश” के रूप में बाहर के मुल्को में जाना जाता है I गाँधी विचारधारा का आदर किया जाता है I अपने वतन से दूर जब आप गांधीजी के विचारों का सम्मान देखते है, तो सर फक्र से ऊँचा उठता है, कि मेरी मिट्टी का कितना बड़ा सम्मान है ये I अहिंसा, सत्याग्रह ये सारी मेरे देश के वेदों (भगवतगीता) की उपज है जिन्हें गांधीजीने दुनियाके सामने रखा I

जब अन्नाजी गांधीजीके विचारों के साथ अनशन (सत्याग्रह) पर बैठे तो हजारों की तादाद में लोग साथ देने निकल पड़े I यह बातें विचारणीय है I इतिहास में बहुत सारी ऐसी बातें हो गयी है, जिसके लिए आज तक दोषारोपण करते रहने का कोई मतलब नहीं होता है I


आज हम स्वदेशी वस्तुओं को लेके बहुत चिंतित होते है कि कहीं विदेशी व्यापार हमारी आर्थिक नीव ना तोड़ दे I थोड़ी सी याद करले कि स्वदेशी की नीव गांधीजी ने ही डाली थी I उसे हम फिर से जीवित कर सकते हैं I

गाँधीजी को लेकर बहस के कई मुद्दे है पर आज बीती बातों पर समय व्यर्थ व्यय करने की बजाय अगर हम उनकी विचार धारा को अपनाकर समाज उत्थान का कार्य करें तो आज की सामाजिक एव आर्थिक स्थिति में कुछ बदलाव जरुर आ सकता है I

इसलिए आज गाँधीजी नहीं गाँधीजी के विचारधारा महत्वपूर्ण है I

इस विषय पर मेरा अध्ययन बहुत ज्यादा नहीं है I जो बातें मेरी तार्किक सोच पर खरी उतर रही है, वही विचार मैं आपके साथ बाँट रही हूँ I मेरी सोच को बेहतर बनाने के लिए आपकी टिप्पणियों का स्वागत है I 

Saturday, September 29, 2012

बाप्पा सुबुद्धि दो I


 चित्र चिन्मयी के ब्लॉग से
कल पूरी नगरी गणपत्ति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ इस नाद से झूम रही थी I ढोल ताशे और उसपर थिरकते युवा कदम, मदहोश करनेवाला समां था I 

बारिश का मौसम आते ही हमारे यहाँ उत्सव का दौर शुरू हो जाता है I भारतीय समाज बहुत उत्सव प्रिय है I उत्तर से दक्षिण तक कई सारे एक जैसे उत्सव मनाये जाते है, बस मनाने की विधि और नाम में कुछ फर्क होता है I आज भी हमारे देश की ८० प्रतिशत आबादी खेती पर अवलंबित है और ये सारे उत्सव कहीं ना कहीं  उसी से जुड़े हुए है I हमारा समाज उसी के आस पास सदियों से बंधा हुआ है I पर आज सब कुछ बदल रहा है I सामाजिक परिवर्तन बहुत कुछ हो रहे है पर फिर भी इस परिवर्तनों की गति बहुत धीमी है I पुरानी बात / प्रथा कहकर आज भी बहुत सी बातें  नयी पीढ़ी पर थोपी जाती है, या उनका अनुकरण करना है इस लिए बस समाज उसे अपने संग बांधे रखा है I पर क्या हम कभी सोचते है ? क्या सही या गलत है ?
हम सब ऐसी बातें क्यूँ नहीं अपना पाते हैं, जो तार्किक कसौटि पर खरी उतरती है ? गणेशा को बुद्धि का नायक बोलते है पर आज का सार्वजनिक रूप देखके लगता है कि वो बुद्धि कहीं पर उधार रखकर हम उत्सव मना रहे हैं I

मुझे आज भी १९९५ की घटना याद है जिस दिन गणेशजी के दूध पिने की अफवाह पुरे देश मे फैली थी I शहर के शहर, गांव के गांव किस तरह गणेशा को दूध पिलाया जाय, इस होड़ में लगे हुए थे I जो लोग भीड़ की वजह से, मंदिर मे अपना नंबर नहीं लगा पाए, वो घर मे ही गणेशा को दुग्धपान करवाने में व्यस्त थे I और उनमें हर कोई (चाहे वो मूर्ति फिर पीतल की हो या चांदी की क्यूँ ना हो) ये बताने मे कम नहीं थे की किस तरह गणेशा ने उनके हाथो से दूध पिया I इस भीड़ मे हमारे जाने माने नेतालोग भी शामिल थे I 

वैज्ञानिक इस बात को तार्किक रूप से विश्लेषण भी किये, पर उनकी बातों को कौन सुने

अन्धविश्वास हमेशा ही बहस का कारण रहा है I पर जन-समाज किस तरह तार्किकता छोड़ के एक गलत बहाव मे बहता है उसका ये छोटा सा उदहारण है I और ये समाज के लिए बहुत गहरे चिंतन की बात है I  

इसलिए आज बाप्पा से प्रार्थना है - हे गणनायक, जाते जाते अपने भक्तो को थोड़ी सी सुबुद्धि प्रदान करो ताकी अगले बरस जब आप फिर से आओ तो आपके आने के साथ कुछ सामाजिक प्रगति भी हो I

मंगल मूर्ति मोरया .... अगले बरस तू जल्दी आ I

Monday, June 25, 2012

फिर से जिंदगी

उसदिन अचानक
जिंदगी आई सामने,
और बोली -
“अब तक तुम भाग रही थी
समय के पीछे,
लो आज से मैं देती हूँ
तुम्हे समय,
जितना चाहे ले लो,
करो जो मन मर्ज़ी है |
बोलो तुम क्या करोगी ?
बस निकल पड़ी मैं,
जुट गई एक सूचि बनाने में,
करना जो था बहुत कुछ,
सूचि बनती गयी ...
कितना कुछ ....
पर  ना जाने क्यूँ,
एक अजीब अहसास क्यूँ आने लगा,
याद  सताने लगी
उस व्यस्तता की
कुछ खालीपन सा लगने लगा |
तब  समझी मैं
कि व्यस्तता थी,
इसलिए
हर बात की अहमियत थी |
समय  की अहमियत थी | 
शायद मैंने ही नहीं दिया था महत्व
समय को ...
फिर नए जोश के साथ ...
लौट पड़ी मैं ...
अपनी उसी व्यस्त दुनिया में 
फिर  से जिंदगी के पीछे |

चित्र  साभार : इन्द्रनील 
http://www.flickr.com/photos/61602174@N08
 




Wednesday, June 13, 2012

कभी कभी ना जाने क्यू ?

कभी कभी ना जाने
क्यूँ  ये होता है
बनती बातों को
बिगाड़ने में
समय क्यूँ साथ देता है
पहली बात से
शुरू  होके
हर बात बिगड़ जाती है
अंत होते होते
जैसे जान ही निकल जाती है ......








Wednesday, May 30, 2012

आखीर कब ?

गर्भपात बोला जाये या भ्रूण हत्या ये एक वध है..... फिर इसमें सजा इतनी कम क्यू ?  अगर डॉक्टर पकड़ी जाये तो उसका कुछ सालो के लिए प्रमाणपत्र ख़ारिज किया जाता है | पर उनका क्या जो लोग ये हत्या करवाते है माँ-बाप, रिश्तेदार उनको कोई सजा क्यू  नहीं ? 
हर  बार खबर में डॉक्टर होते है...मै डॉक्टर का कोई पहलू ले नहीं रही हू क्यू की उनको पैसे की उतनी लालच दी जाती है आज ये डॉक्टर नहीं तो कोई अवैध दाया या डॉक्टर करेगी |  पर दोष तो उनका है जो ये काम करवाना चाहते है| तो इनके लिए सजा का कोई नियम क्यू नहीं है ? 
कब  लगेगी इस पे रोक? कब उठेगे हमारे कदम?  कब होगी बेटीया सच में लाडली? कब जागेगा ये हमारा समाज ? 
आखीर कब ? 


 चित्र गूगल सर्च


 


Saturday, April 14, 2012

सच कितना?

दो दिन पहले इंडोनेशीया में धरिणी कंप हुआ और साथ साथ सुनामी की चेतावनी दी गयी | उससे कुछ देर पहले ही मुंबई के पास हलके धरनी कंप के झटके महसूस किये गए थे | बस देर किस बात की थी साथ साथ ना जाने कितने फेसबूक पेज पे मुंबई में सुनामी आएगा ये अफवाए फैलादी गयी हर कोई डरा हुआ था | मै इस खबर से बेखबर थी तभी मेरा मेसेज बॉक्स मेरी मुंबई की सहेली द्वारा अपडेट हुआ की मुंबई में सुनामी आ सकता है | हाल की मुंबई में सुनामी खबर तोड़ी अटपटी लग रही थी क्यू की सुनामी आने के के लिए कुछ खास तरह के tectonic setting होना जरुरी होता है (आप अगर जादा जाना चाहते है तो भूकंप - इन्द्रनिलजी द्वारा लिखा हुआ विस्तृत लेख यहाँ पढ़ सकते है| ), फिर भी मैंने खबरे टटोलना सुरु कर दिया, पर तब तक सोशल वेबसाइट पर अफवाओको का भंडार खुल गया था |
अब आज सुबह फिर से पश्चिम महाराष्ट्र और गुजरात में धरनी कंप की खबर आई है हाला की ये दोनों धरनीकम्प रिक्टर पैमाने पे मध्यम माने जायेंगे | फिर भी आम आदमी के मन में एक डर बना रहाता है की मै जहा रहता हू वह धरनी का प्रकोप तो नहीं होगा .. तो आईये मै आपके साथ भारत का Sesmic zoning map of India- भूकम्पीय क्षेत्रीकरण नक्शा दे रही हू | और साथ साथ यहाँ जरुर कहना चाहुगी बिना किसी वैज्ञानिक जानकारी के social sites पर अफवाए ना फैलाये |

Map source: mapsofindia.com



Thursday, April 12, 2012

किसे चुनेगे आप ?



Once there was an island on which
FEELINGS lived.
One day a storm came all the Feelings were scared.
Only LOVE made a boat and invited all the Feelings to escape.

All the Feelings came to the boat but One was missing. LOVE came down to see who it was.

It was EGO…..
LOVE tried a lot to bring EGO on the boat but couldn’t Succeed… All the other Feelings went away, but LOVE died because of EGO…

कितना सच है हम सब इस भावनाको महसूस करते है पर न जाने क्यू हम अपने अहंकार पे काबू नहीं कर पाते, किसी न किसी रूप में अहंकार फिर अपना सर उठा ही लेता है|
कितने प्यारे दोस्त /रिश्ते हम गवा बैठते है इसकी वजह से समझ पाते है, पर अहंकार इतना हावी रहता है की मै क्यू पीछे हटु ये सोचकर दूरिया बढ़ जाती है और फिर से प्यार मर जाता है|


चित्र साभार गुगुल सर्च


Wednesday, March 28, 2012

तेजाब

आज सुबह खबर पढके मन व्यथित हो गया ...

माँ बहन बेटी पुकारते हो
लाड प्यार दुलार देते हो,
जब जीवन संगीनी बन जाती है,
तो क्यूँ अय मर्द दुत्कारते हो ||

कैसी व्यथा है नारी जीवन की,
ये कैसा न्याय तेरी बस्ती में,
खून के आसू रुलाकर उसे
तुम तेजाब में नहलाते हो ||



चित्र साभार गूगुल सर्च
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